विश्व हृदय दिवस विशेष: दिल का हाल सुनो दिलवालों... | #NayaSaveraNetwork

लेखक : अतुल प्रकाश जायसवाल
लेखक : अतुल प्रकाश जायसवाल


इस दिल में बड़े अरमान हैं; मासूमियत/प्यार/दुलार/ तकरार है। दिल रूठता भी ज्यादा है; बातों बातों में पिघल भी जाता है। किसी का दिल बड़ा तो कोई छोटे दिलवाला है।

कहते हैं कि दिल से सोचने वाले भावुक होकर गलती करते हैं जबकि दिमाग से सोचने वाला जानबूझकर गलती करता है।

उपरोक्त बातें साहित्य के स्तर पर प्रभावी भी हैं- मान्यता प्राप्त भी हैं।

विज्ञान का काम करने का तरीका बड़ा सीधा है- बस हम टेढ़े लोग समझ नहीं पाते हैं।

विज्ञान 'दिलो-दिमाग' की बात करता है।
सोचना/खुशी/प्यार/तकरार जैसी सभी भावनाएं अथवा प्रतिक्रियाएं दिमाग के 'इलेक्ट्रिक इंपल्स' मात्र हैं, बेचारा दिल बदनाम है। लेकिन, कहां पता था शायरों/कवियों को कि दिमाग की कारस्तानी से दिल वास्तव में नाजुक हो जाता है/टूट जाता है/पिघल जाता है। कुल जमा, मस्तिष्क की गतिविधियों से हृदय की कार्यप्रणाली संचालित/ प्रभावित होती है।

अब जमाने ने तरक्की की यात्रा करी तो ड्राइवर दिमाग ही रहा। हमारा रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल सब बदला । दिल बेचारा इतना एडजस्ट नहीं कर पाया। तो बीमार रहने लगा। पहले आपकी धड़कने बढ़ीं, फिर रक्तचाप बढ़ा, नसों में वसा कि मात्रा बढ़ी - अंत में दिल टूट गया ( हार्ट-अटैक)

दुनियावी बदलाव का मुखिया भले ही दिमाग रहा हो - लोगों का चहेता तो दिल ही रहा। चूंकि यह दुनिया है दिलवालों की, इसलिए दिलवालों ने दिल की सुनी -
सन् 2000 से विश्व हृदय दिवस मनाने का चलन शुरू हुआ।
मकसद था / है :-

हृदय के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
 वैश्विक स्तर पर हृदय रोगों से जुड़े शोधकार्य बढ़ाना। 
 हृदय रोगों से लड़ने हेतु पहल;आधारभूत संरचना और इच्छाशक्ति को पैदा करना ।
 आमजन / रोगी और चिकित्सकों को मुहीम से जोड़कर सकारात्मक बदलाव लाना ।

हमें लगा कि हम जागेंगे और 


 हृदय रोगों के प्रति जागरूक हो जाएंगे।

एक सेहतमंद जीवनचर्या को अपना लेंगे।
 नियमित हेल्थ चेकअप की आदत डाल लेंगे।

अच्छा, अच्छा सब अच्छा हो जाएगा।
मगर कहां ? दिमाग तो तरक्की चाहता है - आसमान में सुराख करना है उसे.

आज हम कहां खड़े हैं :-

  •  हर साल दुनिया भर में 1.8 करोड़ लोग दिल से जुड़ी समस्या के कारण मरते हैं।
  •  यह आंकड़ा भयावह गति से बढ़ रहा है।
  •  दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में सर्वाधिक 39 लाख सालाना मौतें होती हैं।
  •  यहां हर चौथा वयस्क उच्च रक्तचाप का शिकार है। जबकि हर दसवां वयस्क डायबिटीज का शिकार है।
  •  ऊपर से विडंबना ये कि केवल 15% की ही इलाज तक पहुंच है ।
  • भारत में लगभग 30 लाख हृदयाघात के सालाना मामले आते हैं लेकिन 1-2 लाख की ही एंजियोप्लास्टी हो पाती है।

मसलन हम मनुष्य अपना समय / संसाधन / जान गंवा रहे हैं और तरक्की का बिगुल बजा रहे हैं। जबकि साफ-साफ हमारा आर्थिक सामाजिक और व्यक्तिगत नुकसान हो रहा है।

  • अब थोड़ा भय व्याप्त हो गया हो तो उपाय पर बात कर लें :

 संतुलित आहार 
नियमित व्यायाम 
 आठ घंटे की नींद 
 नियमित मनोरंजन 
 शराब, ड्रग्स, सिगरेट से तौबा 
 पर्यावरण की स्वच्छता 

इतना तो करो - खुद भी - सरकारों से भी करवाओ।
फिर भी लोग बीमार तो होंगे ही तो नियमित जांच कराओ;
पारिवारिक बीमारियों का ख्याल रखो;
स्वास्थ्य की तकनीको में निवेश करो; 
सरकार से कराओ;
वैज्ञानिक शिक्षण को बढ़ाओ ।

अब यहां मेडिकल टर्म्स और चिकित्सा तकनीकों का जिक्र करके पकाऊंगा नहीं। आपसे अनुरोध है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विश्व हृदय महासंघ (WHF) की वेबसाइट पर जाकर विधिवत पढ़ लें अथवा अपने डॉक्टर से एक बार मिल आएं.
यहां मैं बात खत्म करूंगा 'विश्व हृदय दिवस' की इस बार की Theme के साथ :-

" व्यक्तियों को अपने हृदय के स्वास्थ्य / देखभाल के लिए प्रेरित करें। "

लेखक : अतुल प्रकाश जायसवाल


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