#Poetry: अपनी डिग्री को बोरियों में भर | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
"अपनी डिग्री को बोरियों में भर" (ग़ज़ल)
पड़ गया जो यहाँ झमेले में
भूल जाता है आया मेले में
चलना कहते मुहाल है जिनका
चाहते हैं पहाड़ ढेले में
झूठ-सच को मिलाते ए.आई.
पक्ष-प्रतिपक्ष वाले खेले में
जो ठहाके लगा के हँसता था
रो रहा है वही अकेले में
वक़्त, हिम्मत, के साथ पैसा भी
बहता बे- रोज़गारी रेले में
अपनी डिग्री को बोरियों में भर
बेचें संसद के पास ठेले में
वंदना
अहमदाबाद