#Poetry: मिट्टी में मिलो ऐसे , नया बन खिलो जैसे | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
मिट्टी में मिलो ऐसे , नया बन खिलो जैसे
नव जीवन देने वालों को मत मारो हैवानों
आग की राख को भी पहचानों हैवानों
ठण्डा पड़ने से पहले हो जाओ ठण्डा
व्यर्थ में ही न अपनाओ हथकण्डा ||
आज नहीं तो कल झूलोगे फांसी का फंदा
नंगा होकर बेमौत मरोगे फिर भी रहोगे नंगा
आंख रहते हुए भी क्यों हो इतने बड़े अंधा ?
समय से पहले क्यों नहीं कर देते अपराध मंदा ||
अस्मत से खेलकर किस्मत कैसे चमकाओगे ?
कर्म में आग लगी है भाग्य संग बुझ जाओगे
मिट्टी में मिलो ऐसे , नया बन खिलो जैसे
कुकर्म के बीज से सांस मत गिनो जैसे - तैसे ||
मिट्टी ने जना , उसी में बना , नहीं समझे भावना
व्यर्थ ही अकड़ना , दर्द देकर रंच मात्र न समझना
मानव होकर , दानव न बनो , हर कली रहे भली
इस तरह नाम बेचकर , न घूमो गली - गली ||
पवन तनय अग्रहरि 'अद्वितीय '
शाहगंज , जौनपुर , उ० प्र०