#Poetry : कइसे गउबइ हम कजरिया | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
कइसे गउबइ हम कजरिया,
पिया परदेसवा गइले न ।
सावन बरसइ सेजिया तरसइ,
देवरा देखि-देखि के हरषइ,
हमरा लागत बाटइ डरिया,
पिया परदेसवा गइले न।
कइसे गउबइ-----------
जइसे बरसइ मघा झकोरी,
वोइसइ नयन चुवइं जस ओरी,
बुनिया लागइ जस चिनगरिया,
पिया परदेसवा गइले न।
कइसे गउबइ-----------
रहि-रहि रोई रतिया-रतिया,
साजन के मारल बा मतिया,
ओनके बाटइ नाहिं खबरिया,
पिया परदेसवा गइले न।
कइसे गउबइ-----------
चारिउ ओर दिखइ हरियाली,
सूखल हमरे हिय कइ डाली,
जाने केकरा लागि नजरिया,
पिया परदेसवा गइले न।
कइसे गउबइ-----------
रोजइ गौरि-गनेश उठाई,
दुबिया कइ चूनी बन्हवाई,
ओनके भाइल अहइ शहरिया
पिया परदेसवा गइले न।
कइसे गउबइ-----------
सावन मन मा विरह बढ़ावइ,
रहि-रहि हमके काम सतावइ,
आगि लगावइ रोज बदरिया,
पिया परदेसवा गइले न।
कइसे गउबइ-----------
लागल बाटइ साढ़े सतिया,
टूटइ पोर-पोर दिन रतिया,
कइसे बस मा रहइ गुजरिया,
पिया परदेसवा गइले न।
कइसे गउबइ-----------
हे वरदानी, औघड़ दानी,
हमरी खेतिया अहइ सुखानी,
कइसे होई खेती-बरिया,
पिया परदेसवा गइले न।
कइसे गउबइ हम कजरिया,
पिया परदेसवा गइले न ।
सुरेश मिश्र



