#Poetry: मेरे कजरी संग्रह 'सावनी बयार' से | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
मेरे कजरी संग्रह 'सावनी बयार' से
भरे सावन मा सेज न सुहाए सखी
साजन न आए सखी न।
केकरा से कही कहानी,
कलकलाए जिंदगानी,
क्रूर बनिके कोयलिया -
हमइ चिढ़ाए सखी।
साजन न आए सखी न।
रैना नींद नाहीं आए,
नैना नीर से नहाएं,
नथुनी नकचढ़ी बनी,
बा ना डेराए सखी।
साजन न आए सखी न।
झकाझोरे बा सवनवां,
कइसे झूली हम झुलनवां,
देवरा देर राति मा,
हमइं बोलाए सखी।
साजन न आए सखी न।
दिया-जिया जरें रात,
हमके कुछुवउ ना सुझात,
डेबरी पूंछइ रोज,
हमइ के बुझाए सखी।
साजन न आए सखी न।
समझे सइयां हउवें सोझ,
जिंदगी बनउले बोझ,
बोझ कइसे घटी -
हमइं ना बुझाए सखी।
साजन ना आए सखी न।
काहें बनल बा जवानी,
रब ही जानइं,हम न जानी,
काम उपरा से-
विरह व्यथा बढ़ाए सखी,
साजन ना आए सखी न।
टूटे हमरा पोर-पोर,
कहिया होई हो अंजोर,
पिय सुरेश कऽ के-
जाइके समुझाए सखी।
साजन ना आए सखी न।
भरे सावन मा सेज न सुहाए सखी,
साजन न आए सखी न।
सुरेश मिश्र