#Poetry: कलित काशी है गंगा है औ गौरा हैं | #NayaSaveraNetwork
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कलित काशी है गंगा है औ गौरा हैं,
औ हैं गणपति,
मेरे भोले हैं अवढरदानि इससे,
विश्व है अवगत,
सरस कविता के गंगाजल को,
हिय- कांवर में लाई हूं,
मैं इस सावन में भोले तुमसे ,
कुछ लेने को आयी हूं ।
विश्व विख्यात है यह बात कि,
तुम अवढरदानी हो,
सरस कविता के जल से मेरे,
तुम अभिषेक कामी हो,
यहां किस ओर गौरा की ,
निगाहों में बसे हो तुम,
दरश कर दो सुलभ भगवन्
कलश भक्ति का लायी हूं।
मैं इस सावन में भोले तुमसे,
कुछ लेने को आयी हूं।
भक्ति श्रद्धा की वट शाखा में लम्बित,
इस हिंडोले में -2
तुम्हे गौरा के संग में झूलते ,
लखने मैं आयी हूं ,
मैं इस सावन में भोले तुमसे,
कुछ लेने को आई हूं ।
अनामिका तिवारी "अन्नपूर्णा"