#Poetry: बेबसी का अन्त खुशियों का ठिकाना हो गया | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

बेबसी का अन्त खुशियों का ठिकाना हो गया।। 

नृत्य करते मोर बन में, दिल दीवाना हो गया।। 
मिल गई राहत उमस से तृप्त धरती हो गई-
मेघ बरसे झूम कर मौसम सुहाना हो गया।।

हो न पूरा जो कभी अनुबंध लेकर क्या करेंगे।। 
सिर्फ कहने के लिए संबंध लेकर क्या करेंगे।। 
मन विकारों से भरा हो, प्रेम की भाषा न हो-
छल कपट और द्वेष ईर्ष्या द्वन्द्व लेकर क्या करेंगे।।

जान की बाजी लगा कर ग़म की आहट छीन ली।। 
खुशी दे कर अपनी उनकी छटपटाहट छीन ली।। 
अब सिसकने के अलावा पास मेरे कुछ नहीं-
मेरे अपनों ने ही मेरी मुस्कराहट छीन ली।।
गिरीश श्रीवास्तव एडवोकेट

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