#Poetry: हरे रामा बगिया पे चलि गइली आरी | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
हरे रामा बगिया पे चलि गइली आरी
झुलनवां कहां डारी रे हरी
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हरे रामा बगिया पे चलि गइली आरी
झुलनवां कहां डारी रे हरी
जवने पेड़वा से फल खइल्या,
वोकरा आजु ढहइल्या रामा,
हरे रामा, रोवइं धरती महतारी
झुलनवां कहां डारी रे हरी।
सिसकि-सिसकि के शीशम रोवइ
रोवइं आम-महुववा रामा,
हरे रामा, सिसकत हौ निमिया बेचारी,
झुलनवां कहां डारी रे हरी।
जामुनि कहइ काटा न काटा हमके,
शूगर रोग भगउबइ रामा,
हरे रामा, गोड़े न मारा कटारी,
झुलनवां कहां डारी रे हरी।
पीपर कहइ काटि के हमके,
सांस कहां से लेइब्या रामा,
हरे रामा, जइब्या तु जम के दुवारी,
झुलनवां कहां डारी रे हरी।
बरगद कहइ पिया कइ लंबी,
मंगबू कहां उमिरिया रामा,
हरे रामा, मिलि हैं कहां जटाधारी,
झुलनवां कहां डारी रे हरी।
फूटि-फूटि के सुगना रोवइं,
सिसकि-सिसकि गौरैया रामा,
हरे रामा,दिहल्या तु खोथवा उजारी,
झुलनवां कहां डारी रे हरी।
बुलबुल कबहुं न गीत सुनइहैं,
फागुन कबहुं न आई रामारामा,
हरे रामा, कोयल न गइहैं लाचारी,
झुलनवां कहां डारी रे हरी।
कटिगा जंगल,होइ अमंगल,
बदरा नाहिं देखइहैं रामा,
हरे रामा, मरघट से होई चिन्हारी
झुलनवां कहां डारी रे हरी।
हरे रामा बगिया पे चलि गइली आरी
झुलनवां कहां डारी रे हरी।
सुरेश मिश्र