#Poetry: कजरी - जल्दी घरवा आवा आइ मानसून पिया | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
कजरी
जल्दी घरवा आवा आइ मानसून पिया
काम भइल दून पिया न
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गांव में मानसून ने दस्तक दे दी है।परदेशी प्रियतम को जोह रही विरहिणी ने फोन किया -
जल्दी घरवा आवा आइ मानसून पिया
काम भइल दून पिया न।
चुवइ लाग फिनि ओसार,
गड़हा होइ गइल दुवार,
नेट न वर्क करइ -
लागे नाही फून पिया,
काम भइल दून पिया न।
पूंछे राति मा सेजरिया,
कहिया अइहैं हो संवरिया,
राह जोहि-जोहि -
बीति गइल जून पिया,
काम भइल दून पिया न।
ठप्प परल बा किसानी,
बोला,कइसे जियरा मानी,
जब से गउवां बनल-
बाटइ देहरादून पिया,
काम भइल दून पिया न।
जेकरा सइयां जी हैं गउवां,
ऊ दबावइ रोज पउवां,
रउवा,हमरी सेजिया -
लागे सून-सून पिया,
काम भइल दून पिया न।
कागा आवइ ना अटरिया,
जोही रात-दिन डगरिया,
कलुवा खुद क समुझइ -
लगल अफलातून पिया,
काम भइल दून पिया न।
खाली-खाली जिंदगानी,
पानी-पानी भइ जवानी,
जिनगी लागइ जइसे-
दाल बिना नून पिया,
काम भइल दून पिया न।
बरसे बदरा झकाझोर,
मन मयूर नाचे मोर,
कब मनावल जाई-
आपन हनीमून पिया?
काम भइल दून पिया न।
सुरेश मिश्र