#Poetry: तुम्हारी भी सिफारिश हो गई क्या | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
ग़ज़ल
तुम्हारी भी सिफारिश हो गई क्या
बिना बादल के बारिश हो गई क्या
ढ़िढोरा पीटकर तुम ख़ुश तो होगे
मोहब्बत की नुमाइश हो गई क्या
तुम्हें पहचानने से साफ़ मुकरा
तुम्हारी आज़माइश हो गई क्या
जो रिश्ता चाहते थे उम्र भर का
उसी से आज रंजिश हो गई क्या
कहाँ से हार माने देख तो लो
अभी अंतिम ये कोशिश हो गई क्या
सुना है आजकल वो ख़ुश बहुत है
अधूरी पूरी ख़्वाहिश हो गई क्या
वंदना, अहमदाबाद।