#Poetry: प्रियतमें! | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
"प्रियतमें!"
खनक
आवाज़ की
दूर हो रही है
जितनी दूरी
बढ़ रही है
आवाज़ गुम होती जा रही है
अब शायद
न लौटे वो
खो जाये बेगानी दुनिया में...
बेगानी क्यों कहूँ
ये तो उसकी
अपनी चयनित दुनिया है
बेगाने तो हम हो रहे...
बेलौस मोहब्बत का भार
अपनी पलकों पे लिए
रोने का मन
चीख़ने का मन
और ढ़ुलक ही पड़े आँसू...
जो
व्यर्थ होंगे
तुम्हारे लिए...
मेरे लिए सिगरेट, शराब से भी
ज़्यादा सुकून
देने वाले हैं अब ये आँसू...
जाओ
प्रियतमे!
अपनी
विदाई में
पिता के कंधे पर
सर रखकर रोते हुए
रोओगी मेरे लिए भी
मेरी भावनाओं की मृदुल स्मृतियों के
आँसू भी साथ-साथ
मैं तुम्हें
विदा करता हूँ
तुम्हारी आवाज़ को भी...
वंदना,अहमदाबाद।