#Article: 18 वीं लोकसभा में चुनाव जीतकर आई महिलाओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल में सम्मानजनक स्थान मिलने की संभावना! | #NayaSaveraNetwork

  • 18 वीं लोकसभा में केन्द्रीय मंत्री बनी महिलाओं के परिजनों द्वारा उनके संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग करने की परिपाटी बंद होने की संभावना!
  • महिला आरक्षण 33 प्रतिशत फिक्स हुआ-18वीं लोकसभा में चुनकर आई महिलाओं को मंत्रिमंडल में उचित 
  • प्रतिनिधित्व देना समय की मांग-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया 

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया -भारत के चुनावी महापर्व का अंतिम चरण 1 जून 2024 को चुनाव होने के साथ ही आम चुनाव में सातवें और आखिर दौर को लेकर पूरी प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी। इसी के साथ सभी को इंतजार रिजल्ट का रहेगा। 4 जून को वोटों की गिनती होगी। हालांकि, नतीजों से पहले देश में नई सरकार कौन बना सकते है इसकी तस्वीर एग्जिट पोल के जरिए तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी, परंतु आज हम इन चुनाव में महिलाओं की बात करेंगे। वैश्विक स्तरपर भारत नारी की पुज्यनीय भूमि है यहां आदि-अनादि काल से नारी का सम्मान किया जाता है जो मां लक्ष्मी सरस्वती दुर्गा काली माता सीता इत्यादि जहां अनेक ऐतिहासिक किस्से दर्ज हैं, वहीं देश की राष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष प्रधानमंत्री सहित अनेक महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर भारतीय नारी आसीन होकर सफ़लताओं के झंडे गाढ़ चुकी है। नारी शक्ति के सम्मान को आगे बढ़ाते हुए 21 सितंबर 2023 का वह ऐतिहासिक पल इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से शामिल हो गया है, जब संसद के उच्च सदन राज्यसभा में देर रात्रि 214 वोटो से संविधान के 128 वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर नारी शक्ति वंदन विधायक 2023 पर मोहर लगाते हुए महिलाओं का विधानसभा लोकसभा में 33 प्रतिशत आरक्षण पर मोहर लगा दी। बता दें लोकसभा ने 20 सितंबर 2023 को ही 454/2 बहुमत से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया था। बता दें स्थानीय स्तरपर भी  पंचायत समितियों निकायों स्तर पर पहले भी 33 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू है परंतु इन स्तरोंपर महिलाआरक्षण का एक कटु सत्य अनुभव अक्सर प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सुनाई देते रहता है किचुनकर आई महिलाओं के पति पुत्रों देवर या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा महिला के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर खुद असंवैधानिक रूप से बैठकों, नीति निर्धारण, आदेशों निर्देशों, ठेकेदारी दबंगई सहित अनेक प्रत्यय किए जाते हैं यहां तक कि अपनी पत्नी मां या रिश्तेदार के संवैधानिक अधिकार के सील ठपे भी अपने पास रखते हैं और समय, धन, मांग को देखकर उसका उपयोग करते हैं। यह सब नजारे मैनें खुद ने भी हमारे स्थानीय प्रशासन में महिला पार्षद के पति या पुत्रों को करते हुए स्वयं देखा है। होता यह है कि महिला को चुनाव में भी उनके परिजनों द्वारा धूमधाम से उतारा जाता है और जिताया भी जाता है।फिर महिला का स्थान घर हो जाता है और बाहर का खेला उनके पति या पुत्रों द्वारा किया जाता है। यानें संवैधानिक कार्य को असवैधानिक व्यक्ति विशेष द्वारा किया जाता है जिसे अत्यंत कढ़ाई से ध्यान देने को रेखांकित करना ज़रूरी है। माननीय पीएम से इस आर्टिकल के माध्यम से मेरा विशेष निवेदन है कि इस कुत्य को रोकने के लिए पार्टी और शासकीय स्तरपर नीति निर्धारण करना समय की मांग है, ताकि महिलाओं को दिखावटी भागीदारी नहीं बल्कि वास्तविक भागीदारी दिलाई जा सके। चूंकि 33 परसेंट आरक्षण पारित हो चुका है, उम्मीद है यह परिपाटी 18वीं लोकसभा में केंद्रीय मंत्रीमंडल में शामिल महिलाओं के साथ बंद होगी और राज्य मंत्रिमंडल में भी यह परिपाटी बंद होने की संभावना है,इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, महिला आरक्षण 33 प्रतिशत फिक्स हुआ अब चुनकर आई महिलाओं के पति पुत्र परिवार वालों द्वारा उनके संवैधानिक अधिकारों के दुरुपयोग को रोकना ज़रूरी है। 

साथियों बात अगर हम महिलाओं के रिश्तेदारों द्वारा असंवैधानिक दखलंदाजी की करें तो, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक आरक्षण कर रखा है। लेकिन नगरीय निकाय में आज भी चुनकर आई महिला पार्षदों के स्थान पर उनके पति, पुत्र, भाई, अन्य रिश्तेदार महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जाती रही हैं। निगम में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण किया गया है। जिसके तहत पार्षद महिलाएं चुनकर आती हैं। महिला पार्षद हैं, लेकिन आधे से ज्यादा पार्षदों का कामकाज उनके पति, पुत्र, भाई, देवर या अन्य रिश्तेदार संभाल रहे हैं। इसे देखते हुए राज्य सरकारों के वर्षों पुराने आदेश को निगम आयुक्त बार बार जारी किया करते है, कि नगरीय निकायों के कामकाज संचालन के दौरान बैठक समेत अन्य कार्यों में महिला पदाधिकारी के कोई भी सगे संबंधी/रिश्तेदार भाग नहीं लेंगे और न ही कोई हस्तक्षेप या दखलंदाजी करेंगे। निर्देश का पालन नहीं होता है तो नगर पालिक निगम अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्रवाई बिना भेदभाव के और बहुत ही गंभीरता से की जाए। पंचायतों में भी महिला जनप्रतिनिधियों के पति या परिवार के अन्य सदस्य उनका कामकाज संभालते है। महिलाएं केवल मुहर बनकर रह गई है। अनेक स्थानीय निकायों में ऐसा होता है कि चुनाव से पहले पार्षद पद के लिए महिला उम्मीदवारों ने पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं, रिश्तेदारों के साथ जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया करते है। लेकिन चुनाव के बाद कई मतदाताओं ने महिला पार्षदों की शक्ल नहीं देखी है। मतदाताओं का कहना है कि समस्याओं के निराकरण के लिए मोबाइल फोन लगाने पर महिला पार्षद के पति, पुत्र से ही बात होती है। वे समस्याएं सुनकर निराकरण करा देते हैं। महिला पार्षद के पति-पुत्र ही वार्ड विकास की रणनीति बनाते देखे जाते हैं। शहर गांव के लोगों ने जिन महिलाओं को पार्षद चुना, वे कुछ महीने बाद ही घर बैठ जाती है, जबकि उनके रिश्तेदार पार्षदी कर रहे हैं। हर 5 सालों के अंदर जनता के वोटों से शहर गांव के  महिला पार्षद चुनी जाती है। लोगों ने अपने वार्ड की जिम्मेदारी सौंपी लेकिन चुनी हुई महिलाओं के रिश्तेदारों ने उनके अधिकारों पर कब्जा कर लिया। मतदान का परिणाम अाने तक ही महिला प्रत्याशी जनप्रतिनिधि के रूप में नजर आती हैं। जीत के बाद मोहल्लों में जुलूस भी निकाला। इसके बाद पुरुष प्रधान समाज ने महिला जनप्रतिनिधि के पार्षद पद पर कब्जा कर लेते हैं। किसी का बेटा तो किसी का भाई, भतीजा, देवर, पति और ससुर स्वयंभू पार्षद बन गए। पार्षदों के ये रिश्तेदार समय-समय पर निगम की विभागीय समितियों की बैठकों में शामिल भी होते रहे हैं। 
साथियों बात अगर हम इसके नियमों की करें तो नियमानुसार चुने हुए जनप्रतिनिधि ही निगम की बैठकों में शामिल हो सकते हैं। अन्य व्यक्ति को संवैधानिक रूप से विभागीय बैठकों में बैठने का अधिकार नहीं है। निगम की व्यवस्था विधानसभा अौर लोक सभा की तर्ज पर ही चलती है। योजना समिति की बैठक में पार्षद के भतीजे
निगम सभागृह में, योजना समिति की बैठक में, पार्षद के रिश्तेदार शामिल होते रहे हैं। बैठक में विचार-विमर्श भी करते रहें है। बात को अनसुनी करने या कुछ कहने पर दबंगई करने से भी परहेज नहीं की जा रही है ऐसा करीब करीब अनेक नगरों में होता है। 
साथियों बात अगर हम 21 सितंबर 2023 को पारित नारी शक्ति वंदन विधेयक 2023 की करें तो, आखिरकार राज्यसभा से भी महिला आरक्षण बिल सर्वसम्मति से पास हो गया. बिल के समर्थन में 214 वोट डाले गए, जबकि विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा। इससे पहले लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पास हो गया था.। अब बिल को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद महिला आरक्षण बिल, कानून बन जाएगा। हालांकि, पहले जनगणना और सीटों के परिसीमन का काम होगा. उच्च सदन में विधेयक पारित के बाद दोनों सदनों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है। जानकारों का कहना है कि महिला आरक्षण बिल को अभी भी लंबा सफर तय करना है। जनगणना और परमीसन के बाद महिला आरक्षण विधेयक साल 2029 के लोकसभा चुनाव तक ही लागू हो सकेगा। 128वें संविधान संशोधन विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को अब अधिकांश राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की आवश्यकता होगी। इसे जनगणना के आधार पर संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों को फिर से तैयार करने के लिए परिसीमन के बाद लागू किया जाएगा. सरकार ने कहा है कि इस प्रक्रिया को अगले साल शुरू किया जाएगा
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 18 वीं लोकसभा में चुनाव जीतकर आई महिलाओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल में सम्मानजनक स्थान मिलने की संभावना!18 वीं लोकसभा में केन्द्रीय मंत्री बनी महिलाओं के परिजनों द्वारा उनके संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग करने की परिपाटी बंद होने की संभावना!महिला आरक्षण 33 प्रतिशत फिक्स हुआ-18वीं लोकसभा में चुनकर आई महिलाओं को मंत्रिमंडल में उचित प्रतिनिधित्व देना समय की मांग

-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

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