#Poetry: नारी के मन की पुकार | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
नारी के मन की पुकार
संस्कृतियों का पाठ पढ़ाना ,
सबको अच्छा लगता है।
मर्यादा का मान बढ़ाना,
सबको अच्छा लगता है।।
पुरा काल से चली आ रही,
हीन दशा उस नारी की,
जय हो उस समाज की जय हो,
केंद्र बनी नारी जिसकी।।
सीता माँ को जब रावण,
हरकर लंका ले जाता है,
उनकी होती अग्नि परीक्षा,
पुरुष परीक्षा नहीं होती।।
जो आदि शक्ति अविनाशिनि है,
उनको इस जग ने नहि छोड़ा,
क्या कसूर था उनका इसमें,
क्यों ऐसा हो जाता है?
गौतम ऋषि की नारि अहल्या,
इंद्र से जब छ ली जाती है,
बेकसूर वो सती अहल्या,
तब पाहन बन जाती है।।
लेकिन अब बस बहुत हो चुका,
अब हमको नही डरना है,
मर्यादा को ध्यान में रखकर,
सच के लिए हमें लड़ना है।।
क्या सृष्टि होती इस जग में,
यदि नारी नहीं होती,
सत्यवान के प्राण क्या बचते,
यदि सती सावित्री नहि होती।।
इससे ज्यादा और क्या कहूँ,
नारी का सम्मान करो,
नारी होती गृह की लक्ष्मी,
उस पर तुम विश्वास करो।