नया सवेरा नेटवर्क:
कबीर की बकरी
बकरी पाती खात है, ताकर काढ़ी खाल।
जे नर बकरी खात हैं, उनकर कौन हवाल।।
कबीर की बकरी
काटी ही जा रही है
और वो ठहरे कबीर
सो अपने समय से ही फटकार रहे हैं
हम अनसुना कर देते हैं
कोई सुनना ही नहीं चाहता
मैं
इस बकरी की खाल को
देखती आई हूँ
ढोलक पर
ढोलक
जिसकी थाप पर गूँजते हैं
शुभ मांगलिक अवसर
भजन कीर्तन पाठ
समझना
क्या है
कीर्तन कीजिए
बकरी की खाल को पीटकर
मन भर ढोलक पीटिए, कीर्तन कीजै आप।
बकरी को जो काटते, उनको लागै पाप।।
वंदना
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