#BareillyNews : कभी राधेश्याम प्रेस बरेली का भी नाम था गीता प्रेस की तरह: हरी शंकर शर्मा | #NayaSaveraNetwork
निर्भय सक्सेना @ नया सवेरा नेटवर्क
बरेली। सन् 1920 ई. में बंगाल में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन के पश्चात् तीन घटनाएं कुछ अंतराल से एक साथ घटित हुई। प्रथम काशी में दैनिक ‘आज’ का प्रकाशन, द्वितीय गीता प्रेस की गोरखपुर में स्थापना तथा तृतीय-बरेली में श्री राधेश्याम प्रेस की स्थापना। वैचारिक दृष्टि से तीनों की दृष्टि एक ही थी लेकिन रीति-नीति में अंतर था। राधे श्याम कथावाचक के पौराणिक और मुखौटों; ग्रंथो के पीछे साम्राज्य विरोधी स्वर, जो अंग्रेजी सरकार का सेंसर/गुप्तचर पकड़ने में असफल रहे। राधे श्याम कथावाचक ने अपनी प्रेस से प्रकाशित ‘भ्रमर’ पत्रिका तथा साहित्य के माध्यम से अंग्रेजी नीतियों की गांधीवादी तरीके से विरोध, स्वदेशी प्रचार प्रसार, राष्ट्रभाषा का विकास, सनातन की अलख तथा देशप्रेम आदि उनके औजार थे।
राधे श्याम जी ने अपने सनातनी सि(ांतों पर न विदेशी प्रभाव पड़ने दिया न ही वह भारतीयों को उनके आगोश में आने के समर्थक थे। उन्होंने राधेश्याम प्रेस से एक ऐसा माहौल तैयार किया जिसकी धूम सारे हिन्दुस्तान में रही। राधे श्याम कथावाचक का राधेश्यामी छंद;तर्ज राधेश्यामी द्ध लोगों की जुबान पर ऐसा चढ़ा कि इसके लोग आज भी कायल हैं। पं. राधेश्याम कथावाचक शैली की रचनाएं, नाटक, कविताएं तथा देशप्रेम का सनातनी साहित्य इसी प्रेम से प्रकाशित होता था। सन् 1920 में भारतीय राजनीति में जो आहट थी, अपने युग सनातनी प्रसार-प्रचार हेतु राधे श्याम कथावाचक ने अपने अपना आभामण्डल का भरपूर लाभ प्रेस को दिया।
वह अपने समय के नवजागरण तथा आर्य समाजी प्रभाव से परिचित थे। अतः उन्होंने अपनी प्रेस से प्रकाशित साहित्य में इस विचारधारा को भी पोषित किया है। राजनीति का यह सुखद परिणाम निकला कि कथावाचकजी एवं अन्य रचनाकारों के ग्रंथों का प्रकाशन भी होने लगा। प्रकाशित ग्रंथ देश की आम जनता तक पहुंचाने लगा, पुस्तकालयों, वाचनालयों प्रकाशकों तथा साहित्य प्रेमियों ने भी इसे हाथों हाथ लिया। पं. गोपीवल्लभ उपाध्याय पं. रामनारायण पाठक, उदयशंकर भट्ट जैसी प्रतिभाएं प्रेस से जुड़ी। इस प्रेस से जुड़ने वाले लेखकों की लम्बी लिस्ट है-आचार्य ज्वालाप्रसाद मिश्र, श्यामनारायण पाण्डेय, अधीर, विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक, द्वारिका प्रसाद बी. ए., निराला, प्रसाद, महादेवी, श्रीधर पाठक, रामधारी सिंह दिनकर, चण्डीप्रसाद हृदयेश, प्रियम्वदा नयन, कमल, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध नारायण, प्रसाद बेतत्व तथा चन्द्र नारायण सक्सेना आदि की रचनाएं इस प्रेस से प्रकाशित हुई हैं।श्री राधेश्याम प्रेस की उत्तर भारत में पहचान बन चुकी थी।
उनकी तर्ज पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित होने लगी थी। रुक्मिणी मंगल तथा राधेश्याम रामायण की नकली पुस्तकें भी प्रकाशित होने लगी थीं। माधोजी का रुक्मिणी मंगल फर्म को क्या नुकसान पहुंचायेगा, दसियों जगह से नकली किताबें प्रकाशित हो चुकी थीं। ;19 अगस्त 1939ः डायरी सेद्ध राधे प्रेस ने नकली किताबों का दंश झेला था। उन्होंने अपनी डायरी में आगे लिखा-बरेली में आजकल स्वामी विद्यानंद की बड़ी मान्यता है। उन्होंने हरिहरात्मक श्री ज्येष्ठ मास में कराया...किताबें भी खूब बिकती हैं। एक पुस्तक वेदान्त दर्शन, में मेरे रचित 5 गीत निकलें, शिवोंह रटाकर कैसा बैठा है आलस मेंऋ मोती-मोती रोल सभी गीतों में 420 पन है। मेरे गीतों के आगे विद्यानंद छपा है। यह किताबें मैंने राधेश्याम प्रेस के मैनेजर को दीं। ;डायरीः 29 जून 1959 ई.द्ध राधेश्याम प्रेस की प्रसि( यहां से प्रकाशित राधेश्याम रामायण के कारण देश की सीमा लांघकर विदेशों तक थी। यहां से प्रकाशित भ्रमर पत्रिका की प्रतियां, चीन, अमेरिका का इंग्लैण्ड, नेपाल, श्रीलंका, मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान तक जाती थीं।
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