नया सवेरा नेटवर्क
आज कल सभी विपक्षी संविधान बचाने निकले हैं|उनके हर भाषण में एक बात कामन है,वो ए कि हम सभी मिलकर संविधान व लोकतंत्र बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं|बर्तमान सरकार संविधान खत्म कर देगी|जनता का अधिकार छीन लेगी|यदि यह सरकार 4 सौ पार गई तो चुनाव ही नहीं होंगे आदि आदि|यह भ्रम जनता में आज का विपक्ष हर सभा में व हर सोशल मिडिया इलेक्ट्रानिक मिडिया और प्रिंट मिडिया में जोर शोर से फैला रहा है|मगर इस पर ऊपरी अदालत कोई संज्ञान नहीं ले रही|एक नेता तो यह तक कह रहे हैं कि जिसकी जितनी पत्नी उसको उतने लाख हम हर साल देंगे|यदि हमारी सरकार बनी तो,बाप का माल है क्या?
जो प्रलोभन जनता को दे रहे हैं|कहाँ से देंगे|ऊपरी अदालत इस पर कोई संज्ञान नहीं ले रही कि चुनाव प्रचार के दौरान कोई भी पार्टी जनता को प्रलोभन नहीं देगी|ऐसा करने वाली पार्टी की मान्यता रद्द कर दी जायेगी|देश का औ करदाताओं का पैसा मुफ्त में बाँटने के लिए नहीं है|देश का पैसा देश की प्रगति के लिए है|न कि नेताओं की नेतागीरी चमकाने के लिए है|यदि ऊपरी अदालत संविधान से ऊपर उठकर स्वविवेक से धुर्त देशद्रही भ्रष्टाचारियों को जमानत दे सकती है तो,उपरोउक्त विषय पर संज्ञान क्यों नहीं लेती|जनता को प्रलोभन देना भी संविधान और जनतंत्र की हत्या की ही श्रेणी में आता है|
अब आते हैं संविधान व जनतंत्र की हत्या विषय पर|संविधान व जनतंत्र की हत्या समय समय पर ऊपरी अदालत ने की है|और जब जब जिसने संविधान व जनतंत्र की हत्या की तब तब ऊपरी अदालत उसके साथ खड़ी मिली|उसकी सुरक्षा कवच बनकर|चाहे वह 1975 का आपातकाल हो,चाहे टाईगर मेनन की फाँसी रोकने के लिए आधीरात को अदालत खोलने का विषय हो|चाहे राहुल गाँधी की सजा माँफ करना हो,या अब महाधुर्त देश विरोधी भ्रष्टाचारी अरविंद केजरीवाल की जमानत का मामला हो|हर बार ऊपरी अदालत जनता को भ्रमित भी करती है और अचम्भित भी|इस बार तो हद ही हो गई|
इतने बड़े बड़े अपराधों में संलिप्त एक ऐसे महाधुर्त को यह कहकर जमानत दे देना कि चुनाव प्रचार करने के लिए इनका बाहर जाना जरूरी है|क्योंकि ए एक पार्टी के मुखिया हैं|किसी के गले नहीं उतर रहा सिवाय देश विरोधी चमचों दल्लों के|यह फैसला यह दर्शा रहा है कि कहीं न कहीं ऊपरी अदालत शक के घेरे में है|जनता जानना चाहती है,यदि जनप्रतिनिधि के नाते राहुल गाँधी की सजा माँफ हो सकती है तो,आजमखान की क्यों नहीं|यदि पार्टी मुखिया के नाते केजरीवाल को जमानत मिल सकती है तो,के कविता और शीबू सोरेन को क्यों नहीं|यह दो तरह की न्याय व्यवस्था एक देश में क्यों?
इस फैसले में देश विरोध की बू आ रही है|ऊपरी अदालत देश विरोधियों आतंकवादियों के ऊपर इतनी मेहरबान क्यों हो जाती है|आजतक जनता समझ नहीं पा रही|सैकड़ों निरपराधियों को मारने वाले अपराधी टाईगर मेनन को बचाने के लिए आधी रात को अदालत लग जाती है|तब जज साहब की नींद में खलल नहीं पड़ता|देश विरोधी नेताओं के लिए रोज सुनवाई होती है|वहीं आम आदमी तारीख पे तारीख पाता है|क्यों? इन सब बातों से हमारी न्याय व्यवस्था शक के घेरे में है|
जिस व्यक्ति के ऊपर देश विरोधी खालिस्तानियों से सम्बंध के आरोप हैं|जिस व्यक्ति के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप हैं|उसको जमानत पर यह कहके छोड़ देना कि चुनाव है, उसमें इनका रहना जरूरी है|तो शीबू सोरेन के कविता और आजम खान को भी या इनके जैसे अन्य नेताओं को भी जेल से बाहर निकालना चाहिए अदालत को|क्योंकि ये सभी अपनी पार्टियों की रीढ़ हैं,और चुने हुए जनप्रतिनिधि हैं|इन सबों पर वही छूट वही व्यवस्था क्यों नहीं? जनता जानना चाहती है|
यदि जन सेवा को ही अदालत प्रमुख मान रही है तो हमारे संत रामपाल व आशाराम बापू को पैरोल व जमानत क्यों नहीं दे रही|ये तो जनता में ज्ञान का प्रसार करते हैं|जनता का कल्याण जिस मार्ग से हो वह बताते हैं|देश भक्ति का जनता में बीजारोपड़ करते हैं|जनता को अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाते हैं|इन लोंगों को भी केजरीवाल लालूप्रसाद राहुल गाँधी वाली छूट क्यों नहीं? क्या इसलिए कि इन लोगों के ऊपर देश विरोधी का कोई आरोप नहीं है|यदि इन पर भी होता तो,इन लोगों के लिए भी ऊपरी अदालत विचार करती|लालूप्रसाद बिमारी का बहाना लेकर पैरोल पा सकते हैं|और पूरे देश में भ्रमण कर प्रचार कर सकते हैं|जबकी सजायाप्ता हैं|तो आशाराम और रामपाल को पैरोल या जमानत क्यों नहीं|इनका निराकरण अदालत को करना होगा| ये लोग तो अभी सजायाप्ता भी नहीं हैं|
संविधान की दुहाई देने वालों से जनता जानना चाहती है कि क्या यह संविधान की हत्या नहीं है|एक जैसे दो अपराधी के लिए दो तरह का न्याय|क्या यह जनतंत्र की हत्या नहीं है|बड़े बड़े भ्रष्टाचारियों को जमानत और साधारण अपराधी को कठोर दंड|काला पानी जैसी सजा|यह कैसा नियम है|देशद्रोहियों के जेल से बाहर निकालने के लिए रोज सुनवाई और आमजन के लिए तारीख पे तारीख|देशद्रोहियों भ्रष्टाचारियों लुटेरों के लिए अदालत 24 घंटे खुली है|और आमजन के लिए सालों नहीं खुलती|यह संविधान व जनतंत्र की हत्या नहीं तो क्या है?संविधान की सपथ लेकर नेता देश को लूट रहा है|जनता में भय और भ्रम की स्थिति बना रहा है|उस पर ऊपरी अदालत मौन है|बहुत सारी क्या,सभी कम्पनियाँ भ्रामक प्रचार करवा रही हैं|माननीय अदालत उस पर मौन है|मगर पतंजलि अपराधी है|क्यो? भ्रम फैलाने वाले नेता छुट्टे घूम घूम कर खुलेआम भ्रम फैला रहे हैं|और अदालत मौन है|क्यों? क्या यह संविधान की हत्या नहीं है|
आज का विपक्ष पूरी तरह संविधान की हत्या कर रहा है|लेकिन हत्यारा बर्तमान सरकार को बता कर जनता को भ्रमित कर रहा है|कोई बतायेगा कि संविधान की कौन सी धारा में मुफ्तखोरी का प्रावधान है जो इंडी गठबंधन वाले जनता को देने का प्रलोभन दे रहे हैं|संविधान की कौन सी धारा में धर्म आधारित आरक्षण है,जो कांग्रेस समर्थित पार्टियाँ देने की बात कर रही हैं|क्या यह संविधान की हत्या नहीं है|अाज का विपक्ष जनता में भ्रम और भय दोनो फैला रहा है|क्या यह जनतंत्र की हत्या नहीं है|इन सबों पर अदालत का मौन रहना यह दर्शाता है की हमारी न्याय व्यवस्था भी खतरे में ही है|और ऊपरी अदालत न्याय का गला पता नहीं किसके दबाव में घोंट रही हैं|
पं.जमदग्निपुरी
1 टिप्पणियाँ
सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई