#Poetry: अब किसी से शिकायत ही बेकार है | #NayaSaveraNetwork
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अब किसी से शिकायत ही बेकार है,
आजकल सब बने मतलबी यार हैं।।
जाति भाषा में इन्सां गिरफ़्तार है
बातों-बातों में क्यों उठती तलवार है।।
बादलों में छिपी चांदनी कह रही ,
आज बादल से मेरी भी तकरार है।
बाहरी दोस्ती में भरोसा नहीं ,
सबसे प्यारा हमारा ही परिवार है ।
गांव भी अब बदलते चले जा रहे ,
भाई भाई से देखो तो तकरार है।।
क़ाफ़िला गाड़ियों का चला आ रहा,
चापलूसों का लगता है दरबार है।।
हाथ खुद्दार का भी पसरने लगा,
जिया लगता है मां उसकी बीमार है।।
स्वरचित मौलिक
सत्यभामा सिंह जिया
कल्याण मुंबई
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