नया सवेरा नेटवर्क
ग़ज़ल
मेरी आँखों के आगे इक हसीं जल्वा गुज़रता है,
तुम्हें जब देख लेता हूँ तो दिन अच्छा गुज़रता है।
कुछेक दिन से जहाँ जाऊँ,जिधर देखूँ,तुझे देखूँ,
हरिक चेहरे के भीतर से तेरा चेहरा गुज़रता है।
कभी लगते धनुर्धारी, कभी लगते हैं वंशीधर,
हमारे सामने से जब कोई बच्चा गुज़रता है।
समुंदर में बहुत जल है,मगर लगता अकिंचन -सा,
कभी जब पास से उसके कोई प्यासा गुज़रता है।
दया ईमान मानवता वफ़ा से क्या उन्हें मतलब,
कि जिनके ख़्वाब में भी हर घड़ी पैसा गुज़रता है।
सितम हद से गुज़र जाता,धरा बेचैन जब होती,
कोई भूडोल आता है, कोई तूफाँ गुज़रता है।
वशिष्ठ अनूप
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