दूरी | #NayaSaveraNetwork
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दूरी
अपनों की खुशी के लिए
मैं अपना घर छोड़ आया ,
खुश रह लूंगा अकेले इस भ्रम में
मैं अपना सुकून भी छोड़ आया ।
एक छोटे से कमरे में रहते हैं
घर में हॉल भी छोटा लगता था ,
दूर हैं तो रूखी सूखी खा लेते हैं
घर में पकवान भी फीका लगता था ।
घर थे तो कपड़ों के लिए ,खाने के लिए ज़िद किया करते थे,
अकेले हैं तो बस नींद भर सोने
की जिद किया करते हैं।
घर थे तो यार दोस्त के साथ
आधी रात को भी घूमते थे ,
थोड़ी दूर काम पर भी जाना अब
अच्छा नहीं लगता है।
घर वालों को लगता है कि
विदेश है तो खुश होगा ,
लड़को को पता रहता है कि अगर
घर गए हम तो पूरा परिवार नाखुश होगा ।
परदेश में आने के बाद परिवार सदा याद आता है पर
आज का कड़वा सच है परिवार को वो लड़का नहीं याद आता है।
हर किसी को उम्मीद है की
लड़का कमा रहा है,
उन्हें क्या पता लड़का वहां
अंदर से बिखरता जा रहा है।
भावनाएं बहुत हैं पर कितना
समेट पाऊंगा ,
मैं छोटा सा कविताकार हूं
कुछ परदेसी के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान लाऊंगा ।
रितेश मौर्य
जौनपुर, उत्तर प्रदेश।