नया सवेरा नेटवर्क
केहू जाई नाहीं संगवाँ
केहू जाई नाहीं संगवाँ चलति की बेरियाँ,
छूट जाई ई जहनवाँ चलति की बेरियाँ।
अच्छा-अच्छा काम करा सुना मोर सजनवाँ,
चलि नहीं वहीं ठाँव एको तोर बहनवाँ।
जात-जात खाली पईबा दुई गज कफनवाँ,
चलति की बेरियाँ, हो चलति की बेरियाँ...
छूट जाई ई जहनवाँ चलति की बेरियाँ।
केहू जाई नाहीं संगवाँ चलति की बेरियाँ,
छूट जाई ई जहनवाँ चलति की बेरियाँ।
पाप और पुण्य कै ई बाटे दुई डगरिया,
राजा और रंक कै सूखी ई लकड़िया।
एकदिन अइहैं चार कहार लेइके डोलिया,
चलति की बेरियाँ, हो चलति की बेरियाँ...
छूट जाई ई जहनवाँ चलति की बेरियाँ।
केहू जाई नाहीं संगवाँ चलति की बेरियाँ,
छूट जाई ई जहनवाँ चलति की बेरियाँ।
दुई दिन की जिन्दगी बा, दुई दिन कै मेला,
खाली हाथ जईबा सइयाँ अइसन हउवे मेला।
गिनती कै साँस में मत लूटा तू लहरिया,
चलति की बेरियाँ, हो चलति की बेरियाँ...
छूट जाई ई जहनवाँ चलति की बेरियाँ।
केहू जाई नाहीं संगवाँ चलति की बेरियाँ,
छूट जाई ई जहनवाँ चलति की बेरियाँ।
रामकेश एम. यादव, मुंबई
(रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)
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