नयी दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को कहा कि जनजातीय समुदाय की जीवनशैली जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या का समाधान प्रदान करती है और उनके पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा के लिए सामूहिक प्रयास किये जाने का आह्वान किया। राष्ट्रपति ने जनजातीय समुदायों से प्रकृति के साथ सामंजस्य के साथ रहना सीखने की आवश्यकता पर जोर दिया, विशेष तौर पर ऐसे समय में जब आधुनिकीकरण की दौड़ ने पृथ्वी और उसके प्राकृतिक संसाधनों को काफी नुकसान पहुंचाया है।
यहां मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में ‘आदि महोत्सव’ का उद्घाटन करने के बाद कहा कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए जनजातीय समुदाय की जीवनशैली को अपनाना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस महोत्सव का उद्देश्य भारत की जनजातीय विरासत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करना है और यह 18 फरवरी तक चलेगा।
मुर्मू ने कहा कि जनजातीय समुदाय नयी तकनीक से लाभान्वित हो सकते हैं और तकनीक का इस्तेमाल सतत विकास के लिए किया जाना चाहिए। भारत में पारंपरिक ज्ञान का अनमोल भंडार है। यह ज्ञान दशकों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में परंपरागत तरीके से आगे बढ़ता रहा है। लेकिन अब कई परंपरागत कौशल समाप्त हो रहे हैं। इस ज्ञान परंपरा के विलुप्त होने का खतरा है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम इस अमूल्य निधि को संचित करें। राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के विकास को प्राथमिकता देती है, लेकिन उनकी संस्कृति की सुरक्षा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा, ‘‘अनुसूचित जनजाति के लिए जोखिम पूंजी कोष, समुदाय के लोगों में उद्यमिता और स्टार्ट-अप संस्कृति को बढ़ावा देने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।’’ उन्होंने विश्वास जताया कि जनजातीय समुदाय के युवा इस योजना का लाभ उठाते हुए नये उद्यम स्थापित करेंगे तथा आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में अपना योगदान देंगे। केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री मंत्री अर्जुन मुंडा ने पिछली सरकारों पर आदिवासी समुदायों के कल्याण की उपेक्षा करने का आरोप लगाया और कहा कि केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने उन्हें सम्मान दिया है।
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