- घर परिवार माता-पिता को तरसाकर आध्यात्मिकता पर अधिक व्यय करने के ट्रेंड को रेखांकित करना समय की मांग
- माता-पिता को बोझ और अनावश्यक श्रेणी में रखकर उनपर शाब्दिक कटु बाण चलाने वाली औलाद को सख्त सजा, समय की मांग-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
@ नया सवेरा नेटवर्क
साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति महोदय द्वारा एक कार्यक्रम में माता-पिता का ख्याल रखनें, सेवा करने व शिक्षकों का सम्मान करने की करें तो उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे हमेशा अपने शिक्षकों, अपने राष्ट्र का सम्मान करें और अपने माता-पिता का ख्याल रखें। वृद्धाश्रमों की वृद्धि पर दुख व्यक्त करते हुए उन्होंने टिप्पणी की कि हमारे देश में वृद्धाश्रमों की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हमारे समाज में पारिवारिक बंधनों और रिश्तों को महत्व दिया जाता है। उन्होंने छात्रों से आह्वान किया कि वे हमेशा अपने माता-पिता और बड़ों का ख्याल रखें, चाहे उनकी स्थिति कुछ भी हो, उनका निवास स्थान कुछ भी हो, चाहे उन्होंने जीवन में कितना भी नाम, प्रसिद्धि और धन कमाया हो।उन्होंने आगे कहा कि भगवान की सच्ची भक्ति माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा में ही है। किसी भी विचार को क्रियान्वित करने के लिए साहस और दृढ़ता के महत्व को रेखांकित करते हुए, उन्होंने कहा, एक पैराशूट तभी काम करता है जब वह खुला होता है। पैराशूट की तरह महान मस्तिष्क का होना किसी काम का नहीं है। यदि आप इसे गिरा देते हैं और नहीं खोलते हैं, तो आपको परिणाम भुगतना पड़ेगा।विफलता को सबसे बड़े शिक्षक और अंततः सफलता की पहली सीढ़ी के रूप में बताते हुए, उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि वे असफलता से कभी न डरें और कभी निराश न हों।किसी भी विचार को क्रियान्वित करने के लिए साहस और दृढ़ता के महत्व को रेखांकित किया। इसलिए मेरा मानना है कि यदि हम माता-पिता बुजुर्गों का सम्मान और सेवा करने की एक बार ठान लें तो वह होकर रहेगा।
साथियों बात अगर हम वर्तमान परिपेक्ष में माता-पिता की उपेक्षा की करें तो, आज अधिकांश परिवारों में वृद्ध माता-पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा और चिकित्सा तो दूर, उनके साथ उपेक्षापूर्ण-पीड़ादायक व्यवहार किया जाता है। इतना ही नहीं, उनकी मृत्यु की प्रतीक्षा की जाती है।यह उपेक्षापूर्ण व निष्ठुरव्यवहार सर्वथा अनुचित है। आज वृद्धाश्रमों की बढ़ती हुई संख्या और तीर्थस्थानों में उम्रदराज भिखारियों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वृद्ध माता-पिता की दशा कितनी दयनीय हो गई है। कितनी लज्जा की बात है कि जिन माता-पिता ने अपनी संतान के लिए अनेक प्रकार के कष्ट सहते हुए उन्हें पढ़ाया, सभी सुविधाएं उपलब्ध कराईं, स्वयं दुख सहते हुए संतान को आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयत्न किए, वही संतान जीवन के अंतिम समय में उनको छोड़कर दूर रह रही है। युवा यह नहीं जानते कि एक दिन वे भी असहाय वृद्ध होंगे तब वे भी क्या अपनी संतान से इसी व्यवहार की चाह रखेंगे जैसा कि आज वे स्वयं अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं?
साथियों बात अगर हम वृद्धजनों के सम्मान व मूल्यों संबंधित धार्मिकता श्लोकों की करें तो, वृद्धजनों की सेवा के संबंध में यह श्लोक महत्वपूर्ण है : अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन: चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥
यानें वृद्धजनों को सर्वदा अभिवादन अर्थात सादर प्रणाम, नमस्कार, चरण स्पर्श तथा उनकी नित्य सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल-ये चारों बढ़ते हैं। इस श्लोक का आशय स्पष्ट है कि हमें सदैव अपने माता-पिता, परिवार के ज्येष्ठ सदस्यों एवं आचार्यों की सेवा सुश्रुषा, परिचर्या का विशेष ध्यान रखना चाहिए। वे सदैव प्रसन्न रहेंगे तभी हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा और हम उन्नति कर सकते हैं। माता-पिता और गुरु की सेवा एवं सम्मान करने पर दीर्घायुभव, आयुष्मान भव, खुश रहो आदि आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। वृद्धजनों का आशीर्वाद हृदय से मिलता है। धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार भीष्म पितामह से पूछा, धर्म का मार्ग क्या है? भीष्म पितामह ने कहा-समस्त धर्मों से उत्तम फल देने वाली माता-पिता और गुरु की भक्ति है। मैं सब प्रकार की पूजा से इनकी सेवा को बड़ा मानता हूं।
साथियों बात अगर हममाता-पिता की सेवा को प्राथमिकता की करें तो, माता पिता की सेवा को ही प्राथमिकता दे। क्योंकि माता पिता की सेवा से ही ईश्वर अल्लाह स्वतः प्रसन्न हो जाते हैं। माता पिता को ही ईश्वर अल्लाह मानकर उनकी ही सेवा पूजा इबादत करनी चाहिए क्योंकि जिन माता पिता ने आपको जन्म दिया पाला पोसा आपको लायक बनाया संस्कार दिए भला उन माता पिता से बढ़कर कौन हो सकता है। उप्पर वाले के प्रति आस्था श्रद्धा विश्वास रखना पर्याप्त है, बाकी पूजा और सेवा तो माता पिता की करनी चाहिए और उप्पर वाले को धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने आपको ऐसे माता पिता दिए जो आपसे बेहद प्रेम करते हैं और आपकी हर मनोकामना पूरी करने को सदैव तैयार रहते हैं साथ ही भगवान से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि माता पिता का साथ और आशीर्वाद आप पर सदा बना रहे। ईश्वर अल्लाह की पूजा इबादत या माता-पिता की सेवा में क्या जरूरी है, प्राथमिकता किस को देँ?यदि ऐसी परिस्थिति हो कि हम एक ही काम कर सकें तो निश्चित रूप से माता-पिता की सेवा को प्राथमिकता देनी चाहिये। पर, एक उक्ति आपने सुनी होगी - तन काम में, मन राम में। प्रभु को याद करते हुए, सुमिरण करते हुए यदि माता-पिता की सेवा करें तो दोनों फल आप एक साथ पा सकते हैं।यदि ऐसी परिस्थिति हो कि हम एक ही काम कर सकें तो निश्चित रूप से माता-पिता की सेवा को प्राथमिकता देनी चाहिये।
अतः अगर हम उपलब्ध पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव।घर परिवार माता-पिता को तरसाकर आध्यात्मिकता पर अधिक व्यय करने के ट्रेंड को रेखांकित करना समय की मांग।माता-पिता को बोझ और अनावश्यक श्रेणी में रखकर उनपर शाब्दिक कटु बाण चलाने वाली औलाद को सख्त सजा, समय की मांग है।
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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