आशिक़ी ! | #NayaSaveraNetwork
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आशिक़ी !
बनके साक़ी मेरे पास आया करो,
जाम आँखों से मुझको पिलाया करो।
चुपके-चुपके न आँसू बहाना कभी,
मेरी सोई तलब तू जगाया करो।
आसमां से तू उतरी कोई हूर हो,
अपनी आँखें इधर भी बिछाया करो।
तेरे होंठों से बहती है देखो हँसी,
रखके होंठों पे मुझको सुलाया करो।
फूल खुशबू चुराते बदन से तेरे,
मेरे दिल के चमन में भी आया करो।
बोझ तन्हाई का तू उतारो सनम,
आके मेरी गली फिर न जाया करो।
चाँद-सूरज की दावत उड़ाती हो तुम,
मेरे घर पे भी खाने तो आया करो।
तुझको देखे बगैर नज़्म फुटती नहीं,
तू चंद उन बूँदों को टपकाया करो।
रोग कैसे मिटेगा विरह का मेरा,
उस उभरते बदन में छुपाया करो।
आँसू मेरा झलकता, टपकता नहीं,
अपने हाथों से इसको सुखाया करो।
कब के उलझे तसव्वुर में सपने मेरे,
उनपे उंगली जरा तू फिराया करो।
आशिक़ी का ये बिस्तर बिछा ही रहे,
हुस्न का बस दीया तू जलाया करो।
रामकेश एम. यादव (लेखक ), मुंबई
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