जौनपुर: माता-पिता का सम्मान करना सबसे बड़ी पूजा : शांतनु महाराज | #NayaSaveraNetwork

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नया सवेरा नेटवर्क

  • रामकथा के दूसरे दिन महाराज ने सुनाए कई प्रसंग

जौनपुर। नगर के बीआरपी इण्टर कालेज के मैदान में भाजपा के वरिष्ठ नेता ज्ञान प्रकाश सिंह द्वारा आयोजित श्री रामकथा के दूसरे दिन श्रीराम जन्मोत्सव, नारद मोह, मां-बेटे के संबंध के संवाद को इतने मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया कि श्रोता भाव विभोर हो गए। उन्होंने कहा कि भगवान न सगुण होता है न निर्गुण वह तो भक्तों के वशीभूत हैं। उन्होंने महाभारत युद्ध का भी बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रण किया। कहा कि दुर्योधन की तरफ भीष्म पितामह थे और अर्जुन की तरफ द्वारिकाधीश थे। युद्ध की स्थिति को देखते हुए दुर्योधन ने भीष्म पितामह से कहा कि जिस तरह की उनकी सेना है उसकी जीत तो तय है। भीष्म पितामह ने कहा कि तुम अपनी पत्नी को मेरे शिविर में भेज देना मैं उसे अखण्ड सौभाग्यवती का आशीर्वाद दे दृंगा। 

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यह बात भगवान श्रीकृष्ण ने भी सुन ली। इस पर उन्होंने दुर्योधन की पत्नी भानुमति से पहले ही पांडवों की पत्नी द्रौपदी को भीष्म पितामह के शिविर में आशीर्वाद लेने के लिए भेज दिया। द्रौपदी सायंकाल भीष्म पितामह के शिविर में पहुंची और दण्डवत होकर उन्होंने भीष्म पितामह के चरण स्पर्श किए। इस पर भीष्म पितामह ने सोचा कि यह दुर्योधन की पत्नी है तो उन्होंने अखण्ड सौभाग्यवती का आशीर्वाद दे दिया। थोड़ी देर बाद जब भानुमति आती है तो भीष्म पितामह ने सवाल किया कि तुम कौन हो? इस पर उसने कहा कि आपकी पुत्रवधु तो भीष्म पितामह ने कहा कि तुमने आने में देर कर दी, मैंने द्रौपदी को आशीर्वाद दे दिया।


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शांतनु महाराज ने सबसे मार्मिक ढंग से उन्होंने पुत्र और माता के संबंधों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अपनी बूढ़ी मां को पत्नी के सामने कभी मत डांटना, अकेले में भले समझा देना। कहा कि मां की ममता का कोई मोल नहीं है। उन्होंने कहा कि दान, पुण्य, पूजा-पाठ करिए या न करिए, अपने माता-पिता की सेवा और सम्मान करिए वही सबसे बड़ी पूजा है। उन्होंने एक सच्ची घटना का जिक्र करते हुए बताया कि नोयडा में एक मां अपने पुत्र के साथ रहती थी। पुत्र अपने पत्नी को लेकर बंगलौर चला गया और जब मां फोन करती थी तो वह फोन उठाता ही नहीं था। इस पर वह मर्माहत हो जाती थी। 

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इसके बाद कुछ दिन के बाद मां का निधन हो गया। वह अकेले रहती थी तो किसी को पता ही नहीं चला। आस-पास के लोगों ने जब उसके बेटे को बताया कि कई दिन से तुम्हारी मां घर से कई दिन से नहीं निकली। इस पर बेटा जब घर आया तो दरवाजा तोड़ा गया और मां के हाथ में देखा कि उसकी तस्वीर और दवाई थी। यह भाव सुन सबकी आंखें नम हो गई। 

शांतनु महाराज ने कहा कि जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना; जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना अर्थात जहां पर कुमति होती है वहां पर दरिद्रता आती है और जहां पर सुमति होती है वहां पर लक्ष्मी निवास करती है। शांतनु महाराज ने कहा कि नारद की प्रेरणा से ही माता पार्वती को शंकर भगवान प्राप्त हुए थे। गुरु-शिष्य की महिमा पर एक कहानी बनाते हुए कहा कि शिष्य के मौत का समय 4 बजे निर्धारित था। वह इस बात को जानता था। वह अपने गुरु का पैर दबा रहा था। 

यमराज आ गए और 4 बजने में 15 मिनट बाकी था। वह थोड़ी देर तक खड़े रहे। इस प्रकार गुरु ने अपने शिष्य को बचा लिया। कथा के अंतिम क्षणों में श्री राम जन्मोत्सव का आयोजन किया गया। भगवान श्रीराम का जन्म होते ही पूरा पंडाल भगवान श्रीराम के जयकारे से गूंज उठा। इस अवसर पर राज्यमंत्री गिरीश यादव, एमएलसी बृजेश सिंह प्रिंसू, विधायक रमेश मिश्रा, माध्यमिक शिक्षक संघ सेवारत के अध्यक्ष रमेश सिंह, प्रधानाचार्य डॉ. सुभाष सिंह सहित हजारों की संख्या में लोग उपस्थित रहे।


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