नया सवेरा नेटवर्क
- केवट और प्रभु श्री राम का प्रसंग भावविभोर हुए श्रोता गण
अयोध्या। सदगुरु कूटी अयोध्या धाम भाद्रपद मास में चल रहे सात दिवसीय श्रीराम कथा के पांचवे दिन जौनपुर से पधारे विद्वान कथावाचक प्रवक्ता पं. सीताराम (नाम) शरण महाराज ने बताया कि मानव जीवन के लिए कल्याणकारी है श्री राम कथा। केवट प्रसंग का वर्णन करते हुए श्रोताओं को बताया कि निषादराज केवट, रामायण का एक पात्र है।
जिसने प्रभु श्री राम को वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ अपने नाव में बिठा कर गंगा पार करवाया था। इसका वर्णन रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में किया गया है। राम केवट को आवाज देते हैं नाव किनारे ले आओ पार जाना है।
मागी नाव न केवटु आना।
कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
चरन कमल रज कहुं सबु कहई।
मानुष करनि मूरि कछु अहई॥
श्रीराम ने केवट से नाव मांगी पर केवट नाव लाता नहीं है। वह कहने लगा मैंने तुम्हारा मर्म जान लिया। तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है। पत्थर की की शिला पर आपके चरण पड़ते ही अहिल्या आपके परम धाम को चली गई। आपके मरम को मैं जानता हूं प्रभु मैं आपकी आने राह देखता रहा हू। कई जन्मों का का भाग्य हमारा आज उदय हुआ है। आज सेवा का अवसर परमात्मा ने मुझे दिया है जीवात्मा से परमात्मा का मिलन हुआ है बड़े ही भाग्य है हमारे प्रभु आज हमारे स्थान पर पधारे। केवट कहता है कि प्रभु पहले पांव धुलवाओ फिर नाव पर चढ़ाऊंगा। अयोध्या के राजकुमार केवट जैसे सामान्यजन का निहोरा कर रहे हैं। यह समाज की व्यवस्था की अद्भुत घटना है।
केवट चाहता है कि वह अयोध्या के राजकुमार को छुए। उनका सानिध्य प्राप्त करें। उनके साथ नाव में बैठकर अपना खोया हुआ सामाजिक अधिकार प्राप्त करें। अपने संपूर्ण जीवन की मंजूरी का फल पा जाए।प्रभु श्री राम अपने भक्त के लिए सब करते हैं। जैसा केवट चाहता है। उसके श्रम को पूरा मान-सम्मान देते हैं। उसके स्थान को समाज में ऊंचा करते हैं।
त्रेता के संपूर्ण समाज में केवट की प्रतिष्ठा करते हैं। केवट भोई वंश का था तथा मल्लाह का काम करता था। केवट प्रभु श्रीराम का अनन्य भक्त था। केवट राम राज्य का प्रथम नागरिक बन जाता है। राम त्रेता युग की संपूर्ण समाज व्यवस्था के केंद्र में हैं। इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। श्री राम के राज्याभिषेक के दौरान केवट भी मौजूद रहे। इस मौके पर उपस्थित अनिल शरण महाराज, अट्टू महराज, सूरज मोदनवाल, सुरेंद्र गिरी, कृष्ण मोहन, महेंद्र बाबा, गोलू दूबे, लाल बाबा, शिव मोदनवाल समेत अनेक लोग मौजूद रहे।
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