मानवी सोच | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
सोच उच्च हो तो बड़ा महान और छोटा बड़ा बन जाता हैं।आपकी सोच ही आपके जीवन का वास्तविक दर्पण होता हैं, इसलिये तो लोग टूटे दर्पण में अपने मुख का दर्शन नही करते हैं।सोच अगर आपकी छोटी और तुच्छ हैं तो आपकी प्रतिष्ठा में गिरावट तय मानिये,आपका पद, प्रतिष्ठा, मान- सम्मान इन सबका आधार आपकी सोच ही हैं। आज की युवा सोच से तो मेरा मन हमेशा कुंठित रहता हैं, शायद आज कि युवा सोच को किसी की नजर लग गयी हो, या बदलते वक्त के साथ ही उनकी सोच का आलम यह हो गया हो।
आज का युवा नशेड़ी बन रहा हैं नौजवान हैं पर पथ भ्रष्ट है ।आज की युवा सोच की तुलना आप कही स्थान पर हैवानियत से कर सकते हो,क्योंकि उसके संगीन अपराध उसकी गवाही देते हैं।बलात्कार जैसे निर्मम अपराध कर स्वयं को राक्षस की उपाधि से अलंकृत करता।उसे किसी की बहू बेटी के प्रति कोई संवेदनाएं नही हैं, तुच्छ सोच का आलम यह हैं कि वो अपने रिश्तों को भी नही बख्श रहा।
शीश कुचला काट दी ज़बान
हवस में अंधा हैं यह निर्मम शैतान
प्रतिष्ठा हुई धूमिल, शत विषत हुआ सम्मान
फिर भी झूठी शिक्षा के छोड़े तीर कमान
वक्त तेरा भी बुरा आएगा
जब हलक में लटकी रह जाएगी चन्द पल की जान
अपने बड़े बुजुर्गों के सानिध्य में जो युवा बड़ा हुआ हैं वो तो इस देश की अमूल्य धरोहर हैं।इसलिए तो हमारे बड़े पढे लिखे कम होते हैं पर उनकी दूरगामी सोच ही हमे सफल बनाती हैं।हमारे बुजुर्ग जो काम वर्तमान समय मे करते है तो कुछ मेरे युवा साथी उसे पागल या ग्वार की कहकर उपहास करते हैं, पर उन्हें को समझाए की वो स्वयं उपहास का नव पात्र बन रहे हैं।
में आपको ऐसे पात्रो से मिलवाता हु जो मेरे लिए तो पथ प्रदर्शक हैं ,शायद आपके लिए भी हो वो कभी शिक्षा का झूठा भाषण नही देते न ज्ञान बाटते बस उनकी दिनचर्या से ही मुझे प्रभावित करती हैं ।पमि व पारले दो पात्र जिसकी हम चर्चा करने जा रहे हैं, दोनो जुड़वा हैं पर विचारो का आपस मे कोई मेल नही एक यंग एंग्री मैन, दूसरा थोड़ा कम गुस्सेल बाकी तो गुस्सा मानवीय संवेदना हैं जो प्रकट तो होती हैं। हमारा ऐसा मानना हैं कि बच्चे भगवान का रूप होता हैं, यानी इनका हमे ईश्वर के जैसा आदर करना चाहिए किंतु कुछ विवेकवान व्यक्ति ही यह कार्य श्रद्धापूर्वक करते हैं शेष तो अच्छे बनने का ठकोसला करते है।पमि भया की एक विशेषता हैं कि छोटी बालिका देखते की उसके चरण स्पर्श करते हैं फिर दोनों आंखे मूंदकर अतुल्य आनदं का एहसास करते हैं, मुझे उस क्षण ऐसा लगता हैं जैसे जीवन का वास्तविक सत्य इन्होंने ही जाना हैं, दोनो भाई लोगो मदद करने में एक कदम भी पीछे नही लेते हैं।हाइवे पे ही इनका प्रतिष्ठान हैं, तो सड़क पर कोई भी दुर्घटना हो दोनो भाई देवदूत बन कर पहुंच जाते हैं, आजकी युवा सोच से कितनी आगे और उच्च सोच है इनकी।अगर हाइवे पे किसका का वाहन खराब हो गया हो तो स्वयं ठीक करने बैठ जाते अपने और अपने पास रखे अस्त्रो का तकनीकी पिटारा खोल देते हैं। इस कहानी में पमि भया का चरित्र थोड़ा अलग हैं वे आते हैं सिख धर्म से पर बजरंग बली के बड़े भक्त हैं ,राह चलते व्यक्ति को रोक कर उनका हाल चाल,पूछना कोई इनसे सीखे वरना आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसे समय हैं दुसरो के हाल जानने की। इसलिये तो हम आज की पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी की तुलना कर रहे हैं, इसलिए तो हम कोई भी काम शुरू करने से पहले अपने से बड़ो की सलाह लेते हैं क्योंकि वे अनुभवी हैं, उन्होंने जीवन को बारीकी से देखा हैं। आज की युवा पीढ़ी कितनी भी शिक्षित और सभ्य बन जाए पर वो कम पढे लिखे बुजुर्गों का रति भर भी मुकाबला नहीं कर सकती, सभ्य और संस्कृत मानव में भिन्नता होती हैं,आज का युवा सभ्य हैं तो हमारे अनुभवी बुजुर्ग संस्कृत मानव हैं।अक्सर देखा जाता हैं जिस परिवार में बुजुर्ग रूपी विरासत नही होती वहाँ हर रोज महाभारत की स्थिति बनी रहती है,और वो परिवार समाज से अलग थलग ही पड़ा रहता हैं। खैर आज तो पूरी मानव जाति ही स्वंय से अलग थलग पड़ी हैं, फिर भी आज की स्थिति संतोषजनक हैं।निकट भविष्य में क्या होगा यह सोचकर ही मन भयभीत हो जाता हैं, इसलिये आज की युवा सोच से यही निवेदन हैं कि अपनो से जुड़े और उनके अनुभव को अपने चित्त में उतारे ताकि हमारा भविष्य सूंदर हो सके।आज की चकाचौंध में अपने बुजुर्गों(दादा-दादी)को न भूले क्योंकि आपकी जिंदगी को उन्होंने ही चकाचौंध की हैं।
सोच बदलिये जमाना बदलेगा
झूठी अकड़ में रहेगा तो न तू बदलेगा न मैं बदलूंगा
समाप्ति की कट्टरपंथी को छोड़ दे ए मानवी
नहीं तो इस आग में तू भी जलेगा और मैं भी जलूँगा
आये दिन देखने को मिल रहा है कि कोई अपने ही वृद्ध मां बाप को वृद्धाश्रम में छोड दे रहा है। तो कुछ हवसी प्यार का नाटक रच भोग विलास करने के बाद काट दे रहा है। भाई भाई का ही दुश्मन बनता जा है और तो और पति पत्नी के रिश्ते भी सामान्य नहीं रहा। युवा सोच को निकट भविष्य के लिए शुभकामनाएं और हमारी बुजुर्ग विरासत को साधुवाद।
पं० आशीष मिश्र उर्वर
कादीपुर सुल्तानपुर
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