नया सवेरा नेटवर्क
महके सदा देश की मिट्टी!
उसने अपनी इज्जत नापी,
देखो ईंटागारों में।
आज भी कितने भूखे बच्चे,
कुत्ते घूँमें कारों में।
नदियों खून बहाई जनता,
तब तो पाई आजादी।
साफ गरीबी झलक रही है,
उनके चुनावी नारों में।
प्रजातंत्र के पेड़ पे देखो,
है कितना मारामारी।
बड़े-बड़े करते घोटाले,
छपते हैं अखबारों में।
समाचार,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया,
रुख पहले से बदली है।
हाथ लगी कुछ ये भी धोने,
बहती गंगा-धारों में।
कोई फिर न वो तीर चलाए,
इस सोने की चिड़िया पे,
लहर-लहर लहराए तिरंगा,
यहाँ से चाँद-सितारों में।
कहीं न तड़पे कोई बुलबुल,
रूह न दिखे शिकारी की।
महके सदा ये देश की मिट्टी,
महके पहरेदारों में।
कैसे उलीचोगे सुतुही से सागर,
सावन कितने बीत गए।
मजहब पे आ अटकी सियासत,
चर्चा है परिवारों में।
ऐब न देखो कोई किसी में,
वतन बड़ा है हम सबसे।
घात लगाए बैठे शिकारी,
फिर न चुने दीवारों में।
रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई
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