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फूल और काँटे!

मत  बेचो  रोशनी  अपने  मकान  की,

कुछ तो लाज रखो दुनिया जहान की।

मिसाइलों  की भृकुटी चढ़ा रखा है वो,  

कुछ तो ख्याल कर मेरे आसमान की।


अनजान बन  के मत  बर्बाद  कर उसे,

कर कुछ कद्र यू.एन.ओ.के जुबान की।

आदमी से इंसान बनना बड़ा  मुश्किल,

खाया न करो कसम  कभी इंसान की।


फूल और काँटे  मिलके तो रह लेते हैं,

कुछ बात कर सुलगते  आसमान की। 

खजूर  की तरह  इतना  बड़ा मत बन,

बदली है  रुत  आजकल पहचान की।    


मत कर नाज तेरे  जमीं में  फैला नभ,    

जिन्दा रहने दे  इज्जत  खानदान की।   

जरूरी नहीं  तेरे नाम  का  चाँद उतरे ,  

कुछ सोच अपने आन-बान-शान की।     


मत कर घायल तू जमीं  की कोख को,  

मत सजा चिता तू अपने श्मशान की। 

देख मत  तमाशा  जलती  रहे  दुनिया,  

गमके   सदा   पूँजी   तेरे   ईमान  की।   

रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार), मुंबई


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