चराग- ए -मोहब्बत! | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
चराग-ए-मोहब्बत जलाने चला हूँ,
नई जिन्दगी अब बसाने चला हूँ।
जुल्फों को बाँध ले तू ऐ! महजबी,
मौसम-ए-बहार मैं लाने चला हूँ।
आशिकी के अंदर बसता है मौसम,
दौरे जमाने को बताने चला हूँ।
धड़कता है दिल मेरा तेरे सहारे,
छलकता वो जाम आज पीने चला हूँ।
राहें ये इश्क की रहेंगी सलामत,
उसका शबाब महकाने चला हूँ।
उड़ाती है होश मेरा मदहोश करके,
तसव्वुर में उसको बसाने चला हूँ।
लगाई है आग वो सीने में मेरे,
दरिया मैं हुस्न की नहाने चला हूँ।
हजारों नजर उसपे फिरती है देखो,
ऐसे कतल से बचाने चला हूँ।
होठों पे उसके जो सोई जवानी,
बढ़ी इस तलब को बुझाने चला हूँ।
शोख अदाओं से गिराती है बिजली,
सोलहवाँ वो सावन चुराने चला हूँ।
रामकेश एम. यादव (कवि साहित्यकार), मुंबई
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Tags:
poetry