नया सवेरा नेटवर्क
इंसानी बस्ती बसाना होगा!
ये आसमां न तेरा है, न मेरा है,
जहां भी न तेरा है, न मेरा है।
मिसाइल से न ढँक आसमां को,
बस समय- समय का फेरा है।
आसमां बेरंग किसने बनाया,
इंसान की हवस किसने बढ़ाया?
हवाओं से मिलके चराग बुझाना,
ऐसा ख्वाब कोई क्यों दिखाया?
कश्तियों को आँधी से मोड़ दो,
जो साथ न चलें उन्हें छोड़ दो।
चुप्पी साधने से बता क्या लाभ,
दिल के दरवाजे अब खोल दो।
रास्ता सूना होता है, हो जाएँ,
समन्दर खुश्क होता है,हो जाए।
जो डिगना नहीं जानते प्रण से,
गिरता है आसमां,तो गिर जाए।
दिल की राहों को महकाना होगा,
इंसानी बस्ती बसाना होगा।
किसी को विरासत में मिली धूप,
हरेक को ठंड से बचाना होगा।
रामकेश एम. यादव(कवि, साहित्यकार), मुंबई।
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