नया सवेरा नेटवर्क
- भौकाल में नहीं जमीन पर रहने वाला हो प्रत्याशी
अंकित जायसवाल
जौनपुर। नगर पालिका परिषद जौनपुर के अध्यक्ष पद पर दिनेश टंडन से कुर्सी छीनना इतना आसान नहीं है. हर पार्टी को जीताऊ प्रत्याशी की तलाश है. कुछ तो 2-3 बार से कुर्सी के पीछे पड़े हैं लेकिन उनकी हर रणनीति फेल हो जा रही है. वहीं टंडन अपनी व्यक्तिगत राजनीति के खुद ही 'पीके' हैं, ऐन वक्त पर वह ऐसी रणनीति पर काम कर जाते हैं जो उन्हें विजयश्री के रथ पर सवार कर देता है और अंतत: वह इस सीट पर फिर से कब्जा कर लेते हैं. इस बार मैदान मारने की ताक में बैठे नए व पुराने प्रत्याशियों को टंडन की रणनीति को समझना होगा. आखिर ऐसी कौन सी रणनीति पर टंडन काम करते हैं कि उन्हें 4 बार से जीत ही मिल रही है. यह तो नगर पालिका परिषद जौनपुर के लिए तो ऐतिहासिक हैं ही बल्कि पूर्वांचल में भी शायद ही ऐसा कोई नगर पालिका सीट हो जहां इस तरह से किसी नेता को दबदबा हो और वह लगातार 4 बार से जीत दर्ज कर रहा हो.
- टंडन के पास जो भी गया निराश नहीं होता
गौरतलब हो कि नगर पालिका परिषद के पूर्व अध्यक्ष दिनेश टंडन के तीन बार के कार्यकाल और उनकी पत्नी माया टंडन के कार्यकाल में जो भी व्यक्ति टंडन के पास किसी काम से गया उसे निराशा हाथ नहीं लगी. टंडन उस व्यक्ति कि हर संभव मदद करते हैं, जो भी उनसे उसके लिए हो सकता है करते हैं. अब इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा समझे या फिर उनकी सहजता, सरलता या सुलभता. अगर किसी नेता के पास जाकर किसी का काम हो जाए तो वह उस नेता का 'माउथ मीडिया' हो जाता है और वोट से इतर भी उनके लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा रखने लगता है.
- नागरिकों के सुख-दुख के साथी
शादी विवाह हो या फिर कोई अन्य शुभ अवसर अगर किसी ने टंडन को आमंत्रित किया तो यह समझ लीजिए वह उसके दरवाजे जरूर जाएंगे, भले ही 2 मिनट के लिए ही जाए. वहां उनकी मौजूदगी मेजबान के लिए बहुत मायने रखती है. शहर का प्रथम नागरिक होने के नाते सभी के यहां टंडन पहुंचने की कोशिश करते हैं. इसके इतर दुख में तो वह जरूर ही पहुंच जाते हैं. अगर ऐसा कोई नेता करने लगे तो फिर वह जनता के दिलों पर राज ही करता है. कुर्सी तो बहुत ही छोटी चीज हो जाती है.
- जिससे मिले उसके हो लिए
कोई व्यक्ति अगर टंडन से व्यक्तिगत तौर पर मिलता है या फिर सार्वजनिक रूप से मिल रहा है तो वह उनसे बातचीत करने में खुद को ठगा हुआ महसूस नहीं करेगा. कहा जाता है कि वह सामने वाले व्यक्ति से इस तरह से बात करते हैं कि उसे कभी लगेगा ही नहीं कि टंडन उसे नहीं जानते. शहर के इतने बड़े नेता होने के बाद भी वह सामने बैठे व्यक्ति को यह महसूस नहीं होने देते कि वह किसके सामने बैठा है. कहने का मतलब कि वह उस व्यक्ति तो तुरंत ही घुल-मिल जाते हैं.
- 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' में एकदम फिट
बसपा नेता होने के नाते टंडन 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' इस ध्येय वाक्य को अपने अंदर उतार लिए हैं. शहर के नागरिकों के अलावा वह ग्रामीण इलाकों के वार्डों के अपने लोगों से भी बड़े चाव से मिलते हैं. शहर के कुछ वार्डों से भले ही उन्हें वोट न मिले लेकिन ग्रामीण इलाकों के वार्डों से उन्हें वोट जरूर मिलता है. अपने अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान जितना वह सक्रिय रहते हैं चुनाव के दौरान उनकी सक्रियता 10 गुना और बढ़ जाती है. यही वजह है कि बड़ी-बड़ी पार्टियों के बड़े-बड़े नेताओं की रैलियां भी टंडन के व्यक्तिगत जनाधार को कम करने में नाकाफी साबित हुई. अगर इस तरह का व्यक्तित्व किसी और प्रत्याशी में है तो वह ही टंडन को हरा सकता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि उन्हें चुनाव में 'अमरत्व' का आशीर्वाद प्राप्त है लेकिन उनमें क्वालिटी तो है जिसके दम पर वह बड़ी आसानी से एक के बाद एक लगातार 4 बार से इस सीट पर कब्जा करके बैठे हैं.
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