नया सवेरा नेटवर्क
- "रामोदय के काव्य सौष्ठव" का लोकार्पण
मुम्बई। "रामोदय का काव्य सौष्ठव" में डॉ. सुधाकर मिश्र जी कहते हैं कि रामोदय सही मायने में रामत्व का उदय है। जब अपने लोगों का उदय होता है, तो राजा का उदय अपने आप उदय हो जाता है। दुबे जी इस बात को अपने व्यवहार से हमेशा साबित किया है। उन्होंने स्वयं से जुड़े हर व्यक्ति को बड़ा करने का प्रयास किया है। आज के समय में जब कोई अपना स्थान छोड़ना नहीं चाहता वैसे में अपनों के लिए अपना स्थान दे पाने का कार्य दुबे जी जैसे विरले ही कर पाते हैं।
उक्त उद्गार एचएसएनसी महाविद्यालय की कुलगुरु प्रो. (डॉ.) हेमलता बागला ने के. सी. महाविद्यालय में आयोजित डॉ. सुधाकर मिश्र कृत "रामोदय" केंद्रित तथा प्रो. (डॉ.) शीतला प्रसाद दुबे द्वारा संपादित समीक्षा ग्रंथ "रामोदय के काव्य सौष्ठव"का लोकार्पण समारोह में व्यक्त किए। इसी क्रम में डॉ. बागला ने कहा कि दुबे जी ने इस पुस्तक के संपादन में जो श्रम किया है वो अनुकरणीय है। मैं इस मंच से कहना चाहूंगी पहले आप सभी यह समीक्षा ग्रंथ पढ़ें और फिर रामोदय पढ़ें।
मैं विद्यार्थियों से हमेशा कहतीं हूँ कि आप जहां भी जाएं, अपनी संस्कृति को लेकर जाएं और इसमें इस प्रकार के समीक्षा ग्रंथ बड़े ही मददगार सिद्ध होते हैं। लोकार्पण समारोह में, पूर्व राज्यमंत्री अमरजीत मिश्र, डॉ. सुधाकर मिश्र, कॉलेज की प्राचार्य डॉ. तेजश्री शानबाग, डॉ. सतीश पांडेय, डॉ. शीतला प्रसाद दुबे, डॉ. अनंत द्विवेदी तथा डॉ. ऋषिकेश मिश्र ने अपने विचार रखे। कार्यकम की शुरुवात रोशनी किरण द्वारा सरस्वती वंदना से हुई। कार्यक्रम का सम्यक संचालन आनंद सिंह ने किया। आर. के. पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित इस ग्रंथ के लोकार्पण समारोह में विविध महाविद्यालयों के प्राध्यापक, साहित्यकार, हिंदी सेवी एवं विद्यार्थियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
- कवि को सम्मान आलोचकों ने दिलाई: डॉ. सुधाकर मिश्र
कवि तो कविता लिखता है लेकिन उसको समाज में स्वीकृत और सम्मान सही मायने में आलोचकों के सतत प्रयासों के बाद ही मिल पाता है। कालिदास को सम्मान कोलाचल मल्लिनाथ ने दिलाई, जायसी को रामचंद्र शुक्ल ने, घनानंद को विश्वनाथ तो तुलसी बाबा को घर-घर पहुँचाने का कार्य गीता प्रेस ने किया। यदि मैं कहूँ कि दुबे जी आज के मल्लिनाथ हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं है। यदि बात करें रामोदय कि तो उसके पंचम सर्ग को मैंने 1970 में लिखा था। जिसकी प्रेरणा बना वाल्मीकि रामायण में उल्लेखित युद्धोंपरांत होने वाला राम-सीता का वार्तालाप, जो कि मुझे उचित नहीं लगा। उसी के विरोध में मैंने इस सर्ग की रचना की, जिसमें राम-सीता के अगाध प्रेम की प्रस्तुति है। शेष 6 सर्गों की रचना 1992-1996 के दौरान की।
- राम तुम्हारा चरित्र बहुत कठिन है: अमरजीत मिश्र
राम के बारे में कहा जाता है कि "राम तुम्हारा चरित्र स्वयं काव्य है, कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।" लेकिन रामोदय को पढ़ने के बाद मैं इसे इस प्रकार लिखता हूं; "राम तुम्हारा चरित्र बहुत कठिन है। कोई कवि कैसे बने, यह विद्वानों के अधीन है।" साथियों विषय पर तो विद्वानों ने बहुत कुछ कहा मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा, यह पुस्तक उनके लिए भी है जो इसके आधार प्रभु श्रीराम से दूरी बनाकर चलते हैं। भगवान राम हम सबके न केवल आराध्य हैं बल्कि जीवन हम सबके लिए एक दर्शन है। जिस हर कदम, हर घड़ी बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
- अपनों को जोड़ने की कोशिश : डॉ. दुबे
"रामोदय का काव्यसौष्ठव" का संपादन हो या आज का यह लोकार्पण समारोह मेरा विशेष प्रयास यही रहता है कि कैसे भी करके अपनों को जोड़ा जाए, एक दूसरे से मिलने का संयोग बने। गुरुवर डॉ. सुधाकर मिश्र के आशीर्वाद और सूर्यप्रसाद दीक्षित जैसे विद्वानों की सहज प्रेरणा ने इस पुस्तक के संपादन कार्य को मेरे लिए बेहद आसान बना दिया। मैं उन सभी विद्वानों के प्रति कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने अपनी विद्वता से इस पुस्तक को समृद्ध किया। रामोदय का संदेश है असत्य पर सत्य की विजय और सामाजिक सद्भाव का, योग्य को सम्मान का। यह संदेश हर किसी तक पहुँचे इसी भावना ने मुझे इस पुस्तक के संपादन का भाव जगा, जिसका लोकार्पण आप सबकी उपस्थिति में आज हुआ है। मैं आभारी हूँ भी रामकुमार जी का और आर. के. पब्लिकेशन का जिनके सहयोग से इस पुस्तक का प्रकाशन हुआ।
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