पूर्वांचल की खुशबू और संस्कृतियों का अद्भुत संगम–बाबूजी का बंगला | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
भायंदर। कभी हमने एक शेर सुना था–न जाने क्या कशिश है मुंबई तेरी शबिस्ता में, कि हम शाम ए अवध और सुबह ए बनारस छोड़ आए हैं। खासकर बनारस की संस्कृति, खानपान और उपासना पद्धति की बात ही कुछ और है। युवा पीढ़ी, जहां सात आठ बजे तक बिस्तर पर खर्राटे मार रही होती है, वहीं बनारस के लोग सूर्योदय से पहले व्यायाम करने के बाद नाश्ता ले रहे होते हैं।
शहरों के आपाधापी भरे जीवन में भले ही यह बात लोगों के गले न उतरे परंतु भायंदर पूर्व के जेसल पार्क परिसर में रहने वाले लोग बखूबी जानते हैं कि पंडित लल्लन तिवारी (बाबूजी) के बंगले में सूर्योदय के पहले ही प्रबुद्ध उत्तर भारतीयों की महफिल सज जाती है। नाश्ता भी बिल्कुल बनारस की अंदाज में। यहां से कुछ ही दूर पर आरएनपी पार्क में उनके द्वारा बनवाए गए काशी विश्वनाथ मंदिर के घंटों की आवाज लोगों के कानो तक पहुंचती रहती है। अभी आज की ही बात है, जब हमें भी इस महफिल में शामिल होने का अवसर मिला। बिस्तर पर सोया हुआ था कि पौने पांच बजे बाबूजी का फोन आ गया। जल्दी-जल्दी तैयार होकर उनके बंगले पर पहुंचा। वह काफी संख्या में लोग पहले ही पहुंच चुके थे। मुंबई हाई कोर्ट के प्रख्यात वकील एडवोकेट आरजे मिश्र, बीजेपी के वरिष्ठ नेता उमाशंकर तिवारी, समाजसेवी पुरुषोत्तम पांडे, सर्वोच्च न्यायालय के युवा अधिवक्ता राजकुमार मिश्र, प्रोफेसर विजयनाथ मिश्र, मीरा भायंदर के नामी डॉक्टर राकेश मिश्र, राष्ट्रीय साहित्यकार डॉ मुरलीधर पांडे, समाजसेवी ब्रिजभूषण दुबे,मंडल अध्यक्ष उपेंद्र सिंह, रविंद्र त्रिपाठी,लल्लू तिवारी,प्रेम भाई जैसे अनेक लोग वहां पहुंच चुके थे। 5:30 का समय हो चुका था। सभी के हाथों में गरम-गरम चाय पहुंच चुकी थी। थोड़ी ही देर बाद हरे मटर की गरम-गरम घुघुरी और ब्रेड। सब कुछ बाबूजी खुद अपने हाथों से सर्व कर रहे थे। बचपन के दिनों की तरह स्वादिष्ट घुघुरी के साथ हाथ से बनी रेवड़ी। तभी महफिल में से किसी ने अंजीर की चर्चा की। खाने खिलाने के शौकीन बाबूजी घर के भीतर गए और जब लौटे तो उनके हाथों में अंजीर के पैकेट्स थे। 7 बजे महफिल खत्म होने का समय हो गया था। चलते चलते बाबू जी ने कल के मीनू की भी घोषणा कर दी। हमारे कहने का साफ मकसद है कि मुंबई जैसे बड़े शहरों में रहकर भी हम अपनी संस्कृति, खानपान पूजा पद्धति और अपनापन को कायम रख सकते हैं। बशर्ते कि उसके लिए बाबूजी की तरह इच्छाशक्ति और समर्पण की आवश्यकता है।
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