नया सवेरा नेटवर्क
इलाहाबाद के लड़कों...
उठो ललकार दो ख़ुद को
उठो यलगार दो ख़ुद को
बता दो बाज़ुओं को इंक़लाबी शोर करना है
बता दो छातियों से लाठियों का ज़ोर सहना है
बता दो जाके यूनिवर्सिटी के पागल बादशाहों से
कि जब आवाम मुट्ठी भींच के यालगार करती है
कलेजे की धधकती आग को आकार देती है तो
बेड़े टूट जाते हैं
सिंहासन डगमगाते हैं
हुकूमत डूब जाती है
बता दो ज़िद अगर आवाज़ बन कर गूँजने लग जाए
तो आकाश के माथे से तारे बीन लेती है
नवाबी छीन लेती है
इलाहाबाद के लड़कों
कहाँ सोए हैं सब बाज़ू
कहाँ खोई हुई है ज़िद
कहाँ हैं इंक़लाबी नस्ल के शेरो सिपाही सब
उठो आवाज़ दो ख़ुद को
उठो सब को जुटाओ फिर
उठो ख़ुद को बताओ हाँ तुम्हीं हो तुम
कि जिसकी गोलियों से डायरों ने देश छोड़ा था
वो जिसकी बोलियों से कल तलक बादल घहरते थे
वो जिसकी सनसनाहट से हवायें रश्क़ करती थीं
वही अंगार आँखें तुम, वही तलवार बाज़ू तुम
उठो आवाज़ दो ख़ुद को
अगर तुम चुप रहे तो विश्वविद्यालय की मीनारों का रुतबा टूट जाएगा
चटक जाएँगी दीवारें, परिंदे भाग जाएँगे
कभी फूलों से फिर ख़ुशबू का आना तय नहीं होगा
ये मिट्टी दुख उठाएगी, खुदी पे शर्म खाएगी
कि कैसे सर्द बाज़ू चोक सीने वाले बेटे अब यहाँ आकार लेते हैं.. जो चुप्पी साध के हर जुल्म को बर्दाश्त करते है
किसी से कुछ नहीं कहते
कि इनकी आत्मा से इनका तेवर मर चुका है अब
जो तेवर रागे बिस्मिल था
जो तेवर था भगत सिंह का
जो तेवर ओढ़कर सुखदेव सौ गोरों पे भारी था
वही तेवर कि आज़ाद को आज़ाद रखता था
वो तेवर जो कभी बूढ़े बहादुर शाह ने ओढ़ा
वो तेवर जो शहीदों के दिलों में आग भरता था
वो जिसकी आँच पे पक कर ये हिंदुस्तान निकला है ..
सो हिंदुस्तान की ख़ातिर
दिलो ईमान की ख़ातिर
गगन को चीर दो फिर से
हवा को शोर से भर दो
तुम अपने ज़ोर से भर दो
इलाहाबाद के लड़कों …
इंक़लाब ज़िंदाबाद ✊🏻
#RiteshRajwada #poetry |
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