नया सवेरा नेटवर्क
वाराणसी। काशी-तमिल संगमम् में सोमवार की संगीत संध्या तमिलनाडु के गुणी कलाकारों और काशी की युवा प्रतिभाओं के नाम रही। दक्षिण भारत के लोक कलाकारों ने अपने कौशल से काशीवासियों को मुरीद बनाया। काशी के कलाकारों ने भी अपनी प्रतिभा का लोह मनवाया।
बीएचयू स्थित एम्फीथिएटर के मुक्ताकाशी प्रांगण में सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की शुरुआत शहनाई की मंगल ध्वनि से हुई। काशी के उस्ताद फतेह अली खान ने संध्याकालीन रागों में निबद्ध रचनाएं बजाईं। उन्होंने उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को याद करते हुए उनकी प्रिय कजरी की धुन भी बजाई। द्वितीय प्रस्तुति बीएचयू के प्रशिक्षु कलाकार कुमार सारंग की रही। कुमार ने अपने संतूर वादन से मेहमान प्रतिनिधियों को विशेष रूप से प्रभावित किया। तबले पर ललित कुमार ने संगत की।
तृतीय प्रस्तुति में ‘वेलु नाचियार का मंचन हुआ। एस. शांति के निर्देशन में संत वेलु के चमत्कारिक जीवन पर आधारित पौराणिक कथानक को उसके मूल स्वरूप में प्रस्तुत किया गया। यह तकनीक के सहयोग से प्रभावी बन गया था। मंचन के दौरान क्षेत्र विशेष की दृश्यावली विशाल एलईडी स्क्रीन पर दिख रही थी। दक्षिण भारत की दो लोकनृत्य शैलियों के सम्मिलन से तैयार कुम्मी का जादू तीसरे दिन भी दर्शकों पर चला। तमिलनाडु के कलाकारों ने कोल्लट्टम और कुम्मियट्टम शैलियों का नृत्य एक साथ प्रदर्शित कर दर्शकों में आनंद की लहरें प्रवाहित कीं। इसका निर्देशन एवं संयोजन पी. सावित्री किंस ने किया।
इस संध्या की विराम प्रस्तुति थप्पट्टम लोकनृत्य की रही। करुम्बयिरम के नेतृत्व में चेन्नई के कलाकारों की इस प्रस्तुति ने विशिष्ट जीवन शैली और दिनचर्या के दर्शन कराए। शिक्षा मंत्रालय, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज एवं दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र संस्कृति मंत्रालय की ओर से आयोजित सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ प्रदेश के आबकारी एवं मद्य निषेध राज्यमंत्री नितिन अग्रवाल ने दीप जला कर किया। उन्होंने कहा कि संगमम् प्रधानमंत्री की दूरदर्शी सोच का एक सशक्त उदाहरण है। दो राज्यों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान बहुत मायने रखता है। दोनों राज्यों की प्राचीन संस्कृति, सभ्यता भले ही अलग-अलग हों लेकिन उनका मूल एक ही है। इस मौके पर राज्यसभा सांसद जीके वासन भी मौजूद थे।
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