नया सवेरा नेटवर्क
- विद्वान संत श्री प्रेम नारायण लाल के ६वीं पुण्यतिथि पर किया गया याद, हुई चर्चा
"कुछ इस क़दर जिया जाए यूं क़िरदार अपना, की पर्दा गिर जाए तो भी तालियां बजती रहे" । परम श्रद्धेय संत श्री प्रेम नारायण लाल निरंकारी सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके पहले स्वयं को ज्ञान से रोशन किया । जगमगाते हुए आध्यात्मिक दीप के रूप में श्री प्रेम ज्ञान का उजाला जन जन में जीवन भर फैलाते रहे। वे पूर्ण सद्गुरु के एक महान सन्देश वाहक थे। वे एक पूर्ण सन्त थे और पूर्ण संत ही युगों युगों तक याद किये जाते है। सप्रेम संस्थान द्वारा सोमवार को ऑनलाइन और टेलिफोनिक संदेश माध्यम से आयोजित कार्यक्रम "एक शाम,प्रेम के नाम" में कुछ कवि,विद्वान ने अपने भाव प्रकट किए।
नई दिल्ली से इंजिनियर धर्मेंद्र अस्थाना ने कहा की आजमगढ़ जनपद के वरिष्ठ प्रवक्ता एवं निरंकारी संत श्री प्रेम नारायण लाल जी बिंद्रा बाज़ार के निवासी थे, जिनका जीवन अत्यंत साधारण परंतु असाधारण व्यक्तित्त्व के धनी थे। एक ओर जहाँ मुहम्मदपुर स्थित अमजद अली इंटर मिडिएट कॉलेज मे इतिहास विषय के प्रवक्ता के रूप मे 39 वर्ष शिक्षक के रूप मे अपने कार्यकाल के दौरान हजारों छात्रों के जीवन को सँवारा वहीं अध्यात्मिकता से जुड़कर समाज को जागरूक करने का जीवन-पर्यंत प्रयासरत करते रहे।
निरंकारी मिशन के ज्ञान-प्रचारक तथा स्थानीय प्रमुख के रूप मे उन्होने सामाजिक व आध्यात्मिक जागृति के अलावा अनेकों सामाजिक कार्यों मे भी अपना भरपूर योगदान दिया। उनका जीवन समस्त मानव-मात्र के लिए समान रहा। अपने प्रेम, सुंदर व्यवहार, सादगी से भरे जीवन द्वारा सभी दिलों मे विशेष स्थान बनाया, क्या बुजुर्ग, क्या बच्चे...सभी उनका आदर-सम्मान आज भी करते हैं। नई दिल्ली से ही अशोक मेहरा ने कहा कि "नेकियों का सिलसिला संसार में दोहराएँ हम, प्रेम नारायण के जैसी ज़िंदगी जी पाएँ हम॥" पूज्यनीय प्रेम नारायण लाल जी एक पूर्ण सन्त थे और "पूर्ण सन्त ही युगों युगों तक याद किये जाते हैं "। एक ऐसा संत जिसका संपूर्ण व्यक्तित्व ही समर्पित भाव से गुरु के चरणो से जुड़ा हुआ था, निरंकार के विशाल रूप में विलीन हो गया। संसार में मानवीय मूल्यों को स्वयं धारण करके जीवन जिया और सभी को यही प्रेरणा दे कर अपनी ड्यूटी पूर्ण रूप से निभा गए।
इस महान व्यक्तित्व को कोटि कोटि नमन ।। वे सदैव हमारी स्मृतियों में रहेंगे । सप्रेम संस्थान के अध्यक्ष एवं श्री प्रेम नारायण लाल के बड़े सुपुत्र डॉ पुष्पेंद्र कुमार अस्थाना ने कहा की वर्तमान मे सप्रेम-संस्थान उन्हीं की शिक्षाओं और प्रेरणाओं के आधार पर प्रदेश सतर पर निरंतर गतिशील है और कला व अन्य क्षेत्रों मे कार्य कर रहा है। इस सप्रेम लौ को हमेशा जलाए रखने की कामना की। नई दिल्ली से रामकुमार सेवक ने भी अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अपने भाव में प्रकट करते हुए कहा कि महात्मा प्रेमनारायण लाल जी बहुत ही सुलझे हुए महात्मा थे | जिस समय शिक्षा के बहुत उन्नत साधन उपलब्ध नहीं थे तब भी उन्होंने शिक्षा को अपना कार्यक्षेत्र बनाया | अच्छी शिक्षा ली भी और दी भी | इस प्रकार समाज को भी सुंदर देन दी | सच्चाई यह है कि पेड़ की पहचान फल से होती है अर्थात व्यक्ति की पहचान उसकी संतानो से होती है। उनकी संतानो के माध्यम से ही मेरा उनसे परिचय हुआ| संसार और अध्यात्म का उनका असाधारण संतुलन था | भूपेंद्र अस्थाना ने अपने कविता के माध्यम से अपने पिता संत श्री प्रेम नारायण जी को याद किया - पापा....
सदियों तक जिंदा रहेगी कहानी आपकी !!
आप केवल प्रेम थे,
प्रेम ही व्यक्तित्व था।
प्रेम-भक्ति और समर्पण,
में लगा हर वक्त था।
प्रेम का ही लव लगा था,
स्वयं इस निरंकार से।
हो भला हर व्यक्ति का , सदा...!
माँगा इस दातार से।
जीवन के हर इक मोड़ को,
समझा सदा रब की मेहर।
जो भी मिला अपना लिया,
जो ना मिला रब की मेहर।।
सबको यही शिक्षा दिया,
कर लो शुकर मानो मेहर।।
इस अवसर पर लखनऊ से चित्रकार निरंकार रस्तोगी ने श्री प्रेम नारायण जी के डिजिटल पोर्ट्रेट बनाकर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की । विवेक शर्मा “रफ़ीक़” (नई दिल्ली) से अपने भाव में कहा की- जिस्म के जाने से हर दिल उदास हैं, दिल में बसी हुई, उनकी यादें ख़ास हैं। रूह तो साथ है सदा और लगता है कुछ यूँ, “प्रेम जी” सदा हमारे आस-पास हैं। इसी प्रकार बड़ोदरा गुजरात से विनोद अस्थाना,गाज़ियाबाद से अभयनारायण, जौनपुर से विजय शील, लखनऊ से धीरज यादव, गिरीश पांडेय, आजमगढ़ से कन्हैया लाल श्रीवास्तव, सुभाष अस्थाना, महेंद्र श्रीवास्तव, कमलेश अस्थाना, मिथिलेश अस्थाना,डॉ संतोष अस्थाना, लखनऊ से मनीषा श्रीवास्तव, प्रतीक, पावक, गाज़ियाबाद से रानी श्रीवास्तव,गाज़ीपुर से विजय कुमार श्रीवास्तव,जौनपुर से डॉ अलोक चंद्र,वाराणसी से रोहित, सीमा अस्थाना आदि लोगों ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अपने भाव सन्देश रूप में प्रेषित की।
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