कविता| #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
ठसके से लेते हैं रिश्वत
ठसके से लेते हैं रिश्वत
फिर काहे का रिस्क
ऑफिस हो या स्टेशन
रेट सब जगह हैं फ़िक्स
रिश्वत ही बचा लेती हैं जाने से जेल
नीचे से ऊपर तक चल रहा है यह खेल
बाबू से मंत्री तक बना है तालमेल
फिर काहे को जाएंगे जेल
ऊपर से नीचे गजब की चैन के खेल
जाते हैं कुछ दिन जेल
झटके से सेटिंग कर हो जाता हैं मेल
उल्टा कंप्लेंट करने वाले को होती है जेल
नागरिकों को चकरे खिलाकर करते हैं फेल
फिर चलता है पैसे का खेल
फाइल आगे सरकती है तब
जब हो जाती है सेटिंग की खेल
ईश्वर अल्लाह देख रहा है
श्यानपती चतुराई होगी फेल
वह सब देख रहा है तेरे खेल
बीमारियां विपत्तियां देकर बोलेगा झेल
लेखक- कर विशेषज्ञ स्तंभकार कानूनी लेखक चिंतक कवि एडवोकेट किशन सनमुखदा भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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