चाँद का दीदार | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
चाँद का दीदार
बाँहों में बीते उनके सारी उमर ये
खंजन की जैसी नहीं हटती नजर ये।
जिधर देखती हूँ बहार ही बहार है
पति मेरे जीवन का देखो आधार है।
सोलह श्रृंगार करती नित्य उनके लिए मैं
आज करवा की व्रत हूँ ये उनके लिए मैं।
वो मेरे चाँद हैं औ मैं उनकी चाँदनी
वो मेरे राग हैं और मैं उनकी रागिनी।
धन वैभव यश कीर्ति ये पल पल बढ़ेगी
मोहब्बत की बेल नित्य नभ को चढ़ेगी।
हाथों में मेंहदी औ माथे पे बिंदिया
चुराऊँगी साजन की नथुनी से निंदिया।
चाँद का दीदार उनकी नजर से करुँगी
मानों स्वयंवर में मैं उन्हें फिर चुनूँगी।
सावित्री सत्यवान जैसा हो मेरा साथ
सुहागनों की मांग का ये पर्व बने ताज।
बादल की ओट से मेरा चाँद इठलाये
भारतीय संस्कृति को ये सदा महकाये।
जीवन का सितार ये ऐसे बजता रहे
मोहब्बत का साज ऐसे सजता रहे।
रामकेश एम यादव(कवि, साहित्यकार), मुंबई
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