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आधुनिक जीवन
प्रातः काल से जाग जाओ
समय से पहले भाग जाओ,
जिंदगी भागदौड़ में गुजर रही है
कुछ आकांक्षा सिमट रही है।
कर्म जाल में हम ऐसे खो जाते है
अपने भी पराए हो जाते है,
साथ के लिए जब हाथ फैलाते है
वो रेत की तरह फिसल जाते है।
चंद रुपयों के खातिर हम घर द्वार
को त्याग देते हैं,
झूठी शान के चक्कर में कीमती समय बरबाद कर देते है।
एक छोटा सा सपना पूरा करने के लिए दर दर भटकते हैं,
ये लड़के भी जनाब कैसे कश्मकश में उलझे रहते है?
आधुनिक जीवन में सिर्फ धनवान
इंसान इज्जत पाता है,
निर्धन तो हर तरफ सिर्फ उपहास का पात्र समझा जाता है।
कोई मानवता को शर्मसार कर देता है तो कोई नाम रौशन कर देता है,
कोई इज़्ज़त करके अच्छा बन जाता है तो
कोई गलत तरीके से शोषण कर लेता है।
मानवता तो मानो हृदयों से लुप्त हो रही है
हर तरफ सिर्फ भ्रष्टाचार है,
ऐसे में आप ही मूल्यांकन कीजिए
आपके क्या विचार है?
–रितेश मौर्य
जौनपुर, उत्तर प्रदेश
मो. नं. 8576091113
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