पुश्तैनी धंधे को व्यवसाय में तब्दील किया जितेंद्र | #NayaSaberaNetwork
नया सबेरा नेटवर्क
22 एकड़ में जबलपुर,आसाम, नैनी से लाये हैं बांस के पौधे
चार साल की अवधि में यह पौधा तब्दील हो जाता है कोट में
हिम्मत बहादुर सिंह
जौनपुर। अगर कोई इंसान किसी भी क्षेत्र में लगन और निष्ठा के साथ कार्य करने के लिए ठान ले तो उसे सफलता मिलनी तय है। ऐसा ही कुछ एक किसान बक्शा ब्लॉक के सलामतपुर गांव निवासी जितेंद्र बहादुर सिंह (डिग्री सिंह) ने अपनी पुश्तैनी धंधा बांस को व्यवसायीकरण में तबदील कर दिया। वह लगभग 22 एकड़ क्षेत्रफल में बांस की खेती की है। वह शुरूआती दौर में 2019 में नैनी एग्रीकलचर इलाहाबाद से पांच सौ पौधे लाये थे इस पौधे से पांच सौ कोट तैयार हो गई है।
नमामि गंगे योजना के अंतर्गत बैंबू मिशन परियोजना के तहत उन्हें लगभग डेढ़ लाख सब्सिडी भी मिली थी। गोमती नदी का तटीय क्षेत्र होने के कारण काफी क्षेत्रफल में यह जमीन असिंचित है उन्होंने एक ऐसे व्यवसाय को चुना जिसको जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचा सक ते हैं। यह व्यवसाय जब आगे बढ़ा तो उनका हौसला और बढ़ गया और वे 2020 में मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के घृण घाट पर स्थित टीशू कल्चर के पैंतीस सौ पौधे लाये जिसकी लागत पर पौधा तीस रूपये पड़ा था। यह पौधा चार साल में कोट के रूप में काफी दूर में फैल जाता है और बांस को बेचने में उन्हें कोई परेशानी भी नहीं होती है क्योंकि व्यापारी स्वंय उनके घर जाकर खरीद लेते हैं। उसके बाद उन्होंने आसाम से 25 सौ पौधे अभी हाल में लाये हैं यह प्रजाति यहां के बांस से अलग है। यह भी लगभग चार साल में तैयार हो जाता है।
उनके 22 एकड़ के क्षेत्रफल में लगाये गये बांस की खेती को देखने के लिए भू-राजस्व अधिकारी रजनीश राय और उनके साथ माउंट लिट्रा जी स्कूल के डायरेक्टर अरविंद सिंह भी गये। भू-राजस्व अधिकारी ने उनके इस नई खेती का बड़े ही बारीकी से अवलोकन किया और कहा कि भौगोलिक स्थिति को देखते हुए किसान जितेंद्र बहादुर सिंह ने जो फैसला लिया इससे अन्य किसानों को भी सीख लेने की जरूरत है। उनके आवास पर नमामि गंगे योजना का बोर्ड भी लगा हुआ है और उसपर सहभागिता परिवार भी अंकित है जिसमें उनके भाई अधिवक्ता अवधनारायण, श्रीप्रकाश, विरेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह, संजय सिंह, अमरेंद्र सिंह, डब्बू सिंह और पिंटू सिंह अपने भाई के इस नई खेती में पूरी तरह सहभागिता निभा रहे हैं। इस संबंध में जब किसान जितेंद्र बहादुर सिंह से जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने बताया कि इस खेती को करने की प्रेरणा मुझे यू टयूब पर देखने से मिली।
उनका यह भी कहना है कि 2025 तक दस हजार कोटे लगाने का लक्ष्य रखा गया है और इस कार्य में पूरा परिवार सहभागिता कर रहा है। कहा कि अगर सरकार ने सहयोग किया तो बड़े पैमाने पर इसकी खेती होगी और सरकार भी इस उद्योग को बढ़ावा देने पर विचार कर रही है क्योंकि बांस का उत्पादन बढ़ने पर कागज उद्योग में यह काफी कारगर होगा। अगर और भी किसान इस खेती पर जोर दिये तो आने वाले समय में कागज उद्योग के कारखाने भी लग सकते हैं जिससे बेरोजगार नौजवानों को रोजगार मिलने के आसार बनेगें।
हलांकि उनका यह भी कहना है कि हमारे परिवार का यह पुश्तैनी धंधा है हमारे बाप दादा भी काफी बड़े क्षेत्रफल में बांस लगवाये थे लेकिन यह पूर्वांचल इलाके की प्रजाति है। अब नये तरीके के टीशू कल्चर आ रहे है जो कम समय में बड़े बड़े बांस तैयार हो जा रहे हैं इससे किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकती है जब उनके यह पूछा गया कि इस खेती को क्यों चुना तो उन्होंने यह बताया कि तटीय क्षेत्र होने के कारण और खेती यहां पर संभव नहीं है। अन्य खेती को नीलगाय व वन्य जन्तु नुकसान पहुंचाते हैं जबकि बांस की खेती फल फूल रही है। इसे कोई भी जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
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