ऐतबार नहीं! | #NayaSaberaNetwork
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सच सुनने को कोई तैयार नहीं,
सच बोलने को कोई तैयार नहीं।
लोग बिकने के लिए तैयार बैठे हैं,
ये मेरा दिल शहर का बाजार नहीं।
किस मिट्टी के पहले के लोग बने थे,
अब के लोगों में वैसा प्यार नहीं।
शोहरत, दौलत सभी कमाते यहीं से,
हर कोई देश के प्रति वफादार नहीं।
काँटों को कितना भी गुदगुदाओ मगर,
फूलों के जैसा उसमें किरदार नहीं।
मेरा दिल बना है इस्पात के जैसा,
है बड़ा कोमल पर रेत की दीवार नहीं।
आदमी नहीं मिलता इंसान की तरह,
इसीलिए तो अब विश्व गुलजार नहीं।
छलकते अश्कों को पलकों में छिपाओ,
अब के लोग उतने समझदार नहीं।
आपसी रिश्ते बन रहे हैं व्यापारी,
गुलों के हाथ कोई तलवार नहीं।
तल्खियों की बाढ़ में बहते रिश्ते,
अब तो कोई लेता अवतार नहीं।
पाप की कमाई से भले भर ले गँठरी,
लेकिन मोक्ष को तेरा इंतजार नहीं।
पल-पल बदल रही है दुनिया ये रंग,
किसी का किसी पर ऐतबार नहीं।
रामकेश एम. यादव (कवि, साहित्यकार), मुंबई।
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