पत्थर न बन जाए इंशा! | #NayaSaberaNetwork
नया सबेरा नेटवर्क
फूलों -सा सारा जग महके,
परिन्दों-सा चहकने दो।
सजाओ न मिसाइलों से गगन,
धरती दुल्हन-सी सजने दो।
थरथरा रहा नभ-थल ये,
शहनाई धूल न जमने दो।
सकते में हैं देख सिताारे,
जख्म तो उनका भरने दो।
खूँटे से सत्य को मत बाँधो,
होंठों पे गुल तो खिलने दो।
अजायब घर में कौन रहेगा?
सत्य राह तो चलने दो।
कत्ल करके जो दिखाते सादगी,
मखमली सेज न सोने दो।
जो ख्वाहिश रखते फूलों की
काँटों पे उनको चलने दो।
मत सींचो आंसुओं से जमीं,
मोहब्बत के दाने लगने दो।
उठाओ न कोई हाथ में पत्थर,
तहजीब को जिन्दा रहने दो।
मत खोलो अश्कों की दुकान,
सोकर उम्र न गुजरने दो।
उठना-गिरना जीवन का हिस्सा,
गिरकर फिर संभलने दो।
रोना है तो खुलकर रो लो,
आँख न सावन बनने दो।
ढल जाएँगे गम के बादल,
न जहर हवा में घुलने दो।
मत रोको तू बहकी घटा को,
बरसे उसे बरसने दो।
खुशनुमा हो जाए मौसम,
सोंधी खुशबू उठने दो।
वक्त की धूप से कौन बचा?
जले बदन तो जलने दो।
कहीं न पत्थर बन जाए इंशा,
वफा का गुल तो खिलने दो।
सजदा करो इस मिट्टी की,
जो बने खुदा उसे बनने दो।
काटो न किसी की जड़ कोई,
नई कोंपलें खिलने दो।
रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई
No comments