पर्यावरण! | #NayaSaberaNetwork
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काट रहे वे जंगल-जंगल, वृक्षारोपण भूल गए।
पर्यावरण की रक्षा करना, आखिर कैसे भूल गए।
छाँव और औषधि देकर तरुवर करते सबसे प्रेम,
धन संचय की चाह में वो प्राणवायु क्यों भूल गए।
देखो हवा जहरीली होकर श्वासों में विष घोल रही,
वृक्ष हैं धरती के श्रृंगार, उसको कैसे भूल गए?
लाखों जीव बसेरा करते उन हरी-भरी डालों पर,
जो भूख मिटाते जीव जगत की कैसे उसे भूल गए।
ऐशो-आराम के चक्कर में धरती बंजर कर डाली,
वृष्टि और सृष्टि की रक्षा, आखिर कैसे भूल गए?
फल-मेवे देते-देते, कभी नहीं हैं थकते वे,
हवा, पानी, पर्यावरण को आखिर कैसे भूल गए।
ठंडी-ठंडी हवा झोंके, राही की थकन मिटाते,
उस मृदुल छाया के संग कोयल का गाना भूल गए।
हरियाली जब नहीं रहेगी, खुशहाली होगी गायब,
क्यों बने वृक्षों के भक्षक, रक्षक होना भूल गए।
रामकेश एम. यादव (कवि, साहित्यकार) मुंबई।
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