अखाड़ा | #NayaSaberaNetwork
नया सबेरा नेटवर्क
हमारे गाँव देश में परंपरा रही है
माटी के अखाड़ों की....जहाँ....
किसी अनुभवी के मार्गदर्शन में
गाँव के नवयुवक
अखाड़े की धूल-मिट्टी रगड़ कर
चमकाते हैं.....अपना शरीर....
और बनाते हैं..मजबूत कद काठी
पसीना बहाते हुए....एक दूसरे को
चित-पट करते...पटखनी देते हुए
आनन्दमय वातावरण में.....
समय के साथ
अखाड़ों में बदलाव भी हो रहे हैं
अखाड़े गद्दे के होने लगे हैं
जो मजबूत पाँवों को
फिसल जाने जाने का
अवसर देने लगे हैं.....
चित और पट यहाँ भी है....पर....
पीठ पर से धूल नदारद है...और..
तय कर पाना भी मुश्किल है कि
किसके पास कौन सी महारत है
आज का दौर देखें तो.....
बदलाव और भी अलग है मित्रों
अखाड़े मन में-मस्तिष्क में
बन रहे हैं दुनियावी धूल-मिट्टी से
नियमों को ताक पर रखकर
लोग दिमाग से दाँव चलने लगे हैं
शरीर के चित्त-पट से परे जाकर
दिल को घाव देने लगे हैं...
दाँव-पेंच.....अब....
नई तकनीक हो गई है
अखाड़े की बातें और नियम
मन-माने की बात हो गई है...
कैसे भी विजेता बनना
अब सबकी सोच हो गई है...
कैसे भी विजेता बनना
अब सबकी सोच हो गई है....
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर,जौनपुर
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