हरियाली को काँधा ! | #NayaSaberaNetwork
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धूप तेज है, झील का रास्ता बनाओ।
उजड़े इन वनों को कोई तो सजाओ।
अंधेरे पसर रहे हैं अब चारों तरफ,
कोई लफ्जों से सही चराग तो जलाओ।
दुनिया को क्या बताऊँ कि ये क्या हो रहा,
गिरती हरियाली को काँधा तो लगाओ।
खुश रहें लोग फिजाओं में बच्चों के साथ,
परिन्दों को आकाश के आँगन में उड़ाओ।
मत जलाओ हवाओं के साये को कोई,
सावन की जाकर कोई नजर उतरवाओ।
थका - माँदा गगन बेचारा क्या करे,
जंगल का कोई दायरा तो बढ़ाओ।
उखड़ी- उखड़ी साँसें मेघों की देखो,
कत्ल होने से उस समन्दर को बचाओ।
न तन में है पानी, न आँखों में अश्क़,
ज़ख्मों पर कोई मरहम तो लगाओ।
गुम हो जाएगी धरती से रुत एक दिन,
शाख- ए -गुल पे तलवार न चलाओ।
नाच रही बे-लिबास होके जंगल की रुह,
वनों को फिर नया वस्त्र तो पहनाओ।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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