दिल के घाट पे.....! | #NayaSaberaNetwork
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दिल के घाट पे.....!
कपड़ा रंगाकर ये क्या किया,
सिर को मुड़ाकर ये क्या किया,
कपड़ा रंगाया, सिर को मुड़ाया,
गंगा नहाया,जमुना नहाया,
इसको फँसाया,उसको फँसाया,
दुनिया में खून की नदी बहाया,
दिल के घाट पे नहाओ तो जाने।
लाओ कठौती में गंगा तो जाने।।
जाति-पाँति के जाल फँसे हो,
लालच की रस्सी से क्यों तू कसे हो?
ये मिट्टी की काया,ये दुनिया की माया,
माया की छाया में उम्र गंवाया,
धरम की धूप में न मन को तपाया,
बाह्य आडंबर से दुनिया सजाया,
पियो सच्चाई का प्याला तो जाने।
तोड़ो भ्रम का ये ताला तो जाने।
दिल के घाट पे नहाओ तो जाने।
लाओ कठौती में गंगा तो जाने।।
लिख दो कोई सत्कर्म की कहानी,
देश की खातिर लुटा दो जवानी।
आँख से न पर्दा अपना हटाया,
आँख से न पर्दा उसका हटाया,
पाँच रंग के चोले को तूने सजाया,
धन औ यौवन पर लार टपकाया,
कुंडी दुर्बुद्धि की हटाओ तो जाने,
पाप न होने पाए तो जाने।
दिल के घाट पे नहाओ तो जाने।
लाओ कठौती में गंगा तो जाने।।
खाली हाथ जग से न जाओ तुम,
अंदर से ब्रह्म को जगाओ तुम।
जाति न तौलो,शील को ओढ़ो,
मन को टटोलो,प्यार से बोलो,
धोखा वाली गाँठ अब तो खोलो,
झूठे प्रदर्शन से बाहर तो निकलो,
खाओ पसीने की रोटी तो जाने,
नीयत रखो,न खोटी, तो जाने।
दिल के घाट पे नहाओ तो जाने।
लाओ कठौती में गंगा तो जाने।।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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