पौत्र! | #NayaSaberaNetwork
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लंबी उमर हो पौत्र तुम्हारी,
तू आँखों का तारा है।
इस मिट्टी से तिलक करूँ मैं,
मुझको कितना प्यारा है।
नन्हीं -सी मुस्कान तेरी मुझे,
कितनी प्यारी लगती है।
पल-पल ये साँसें होती जवाँ,
दुनिया कितनी जँचती है।
तरस रही थीं कल तक बाँहें,
आकर इनमें झूलो ना।
गंगा-तिरंगा की करना हिफाजत,
दुआ यही नभ छू लो ना।
कीर्ति-पताका-लहरे जहां में,
जग को रोशन कर देना।
जग खेले तेरी गोंद में आकर,
बाँह में जग को भर लेना।
रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई
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