कितनी परछाइयाँ उभरती है | #NayaSaberaNetwork
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कितनी परछाइयाँ उभरती है
जब जिंदगी को जला देने वाली
सूरज की कड़ी धूप मे
मै पीछे मुड़के देखती हूँ,।
एक परछाई मेरे मरे आत्मविश्वास की
तो दूजी मेरी तन्हाई की
तो तिजी मेरे हारी हुई जीत की
चौथी मेरे अंतर के मौत की भी
मुझे हंसती सी दिख रही है।
और ना जाने कितनी अंगिनत पर्छाईंया
मेरे संग तेज़ उजाले मे मेरी पीछे खड़ी
मुझे चिढ़ाती, मुझे रुलाती, मुझे हँसाती
मेरे साथ यूही बस चल रही हैं।
#AR(Aarti)
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