साइड इफेक्ट | #NayaSaberaNetwork
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साइड इफेक्ट
कुछ अबूझ सा हो गया हूँ,
घर के लिए,परिवार के लिए और
समाज के लिए भी....
माँ- बाप का दुलारा मैं,
उनकी जरूरतों पर,
सहारा भी नहीं रह गया हूँ....
प्राण -प्रिय रहा जिसको सदा
उसके लिए भी
बस प्राण ही रह गया हूँ....
प्रिय शब्द ही अपरिचित हो गया है
बाल-गोपाल को...
टीवी सीरियल,सोशल मीडिया,
फिल्मों वाला प्रेम भी
नहीं दे पा रहा हूँ......
उनकी घुमक्कड़ जिज्ञासा भी
पूरी नहीं कर पा रहा हूँ....
गाँव-देश में पहचान नाम से थी
अब वह पदनाम से हो गई है....
समझ में नहीं आता
गुमनाम पहले था या
गुमनाम/बदनाम अब हो गया हूँ
पर यह तो जाहिर है
बहुत कुछ अबूझ सा हो गया हूँ...
एक अजीब सा आभा मंडल
आसपास घेरे हुए है
चमचों-चाटुकारों का....
जिसके प्रभाव से कलुआ,चिथरू,
मंगरु और जोखन तो
आसपास तक नहीं आते
शायद इनके लिए
मैं अछूत सा हो गया हूँ....
कतराते हैं.....
साथ पढ़े-लिखे भी
मित्रवत नाम लेकर बुलाने में
जो लगातार चलता था
आज,कल और परसों...
वही लंठ,चूतिया,हरामी
सुने हो गया है बरसों.....
पहले जहाँ हम सबके
काम आते थे गाँव में
अब काम की चीज हो गए हैं
अपने ही गाँव में
अपने मन का कुछ
कर नहीं पाता हूँ...और...
लोग मन की बात कह नहीं पाते
मित्रों.... यह नौकरी का...
साइड इफेक्ट है....
भीतर से भले ही
आज भी हम वही हैं ....
पर नौकरी के लिबास ने
हम पर लगाम लगा रखी है...और
नौकरी ने लोगों की नजर में
हमें अबूझ सा बना दिया है
घर,समाज,परिवार सगरी में....!
अपने ही गाँव-देश-नगरी में....!!
रचनाकार.....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर,जौनपुर
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