इब्ने मुल्जिम ने हैदर को मारा, रोजेदारों कयामत का दिन है.... | #NayaSaberaNetwork
नया सबेरा नेटवर्क
आज निकलेगा मौला अली की शहादत की याद में जुलूस
इमामबाड़े में रखी गयी तुर्बत, हुई मजलिस किया मातम
जौनपुर। पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स.अ. के दामाद शिया मुसलमानों के पहले इमाम हजरत अली अ.स. की शहादत 20 रमजान के मौके पर शुक्रवार को जिले में जुलूस निकालकर शाह के पंजा इमामबाड़ा में तुर्बत को सुपुर्दे खाक किया जायेगा। गौरतलब है कि कोरोना के चलते दो वर्षों से ये जुलूस नहीं निकल पाया था ऐसे में अजादार अपने मौला का गम मनाने के लिए बेताब नजर आ रहे हैं। शाही किला, ढालगर टोला से इमामबाड़ा मद्दू मरहूम में शुक्रवार को दोपहर ढाई बजे मजसिल का आयोजन होगा जिसके बाद अंजुमन हुसैनिया बलुआघाट नौहा खानी व सीना जनी करते हुए जुलूस को शाही किला, चहारसू चौहारा, ओलंदगंज, जोगियापुर, कचहरी, अंबेडकरत तिराहा होते हुए शाह का पंजा ले जायेगी जहां रोजा इफ्तार के बाद तुर्बत को सुपुर्दे खाक किया जायेगा। बुधवार की रात इमामबाड़े में तुर्बत को सजा कर रखा गया जिसकी जियारत करने के लिए लोगो के आने का सिलसिला शुरू हो गया। शिया बाहुल्य इलाकों में 18 रमजान की रात्रि से मजलिस व मातम का सिलसिला जारी है लोगों ने काले लिबास पहन कर अपने मौला के गम का इजहार किया। मौलाना सैयद सफदर हुसैन जैदी ने बताया कि मौला अली को 18 रमज़ान (इस्लामिक कैलंडर का नौवां महीना) की रात मौला अली ने नमक और रोटी से रोज़ा इफ्तार किया। रिवायतों में उनकी बेटी जनाबे ज़ैनब के हवाले से मिलता है कि रातभर बाबा मौला (अली) बेचैन रहे। इबादत करते रहे। बार-बार आंगन में जाते और आसमान को देखते। 19 रमज़ान को सुबह की नमाज़ पढ़ाने के लिए मौला अली मस्जिद पहुंचे। मस्जिद में मुंह के बल अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम नाम का शख्स सोया हुआ था उसको मौला अली ने नमाज़ के लिए जगाया और खुद नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो गए। इब्ने मुल्जिम मस्जिद के एक ख़्ाम्भे के पीछे ज़हर में डूबी तलवार लेकर छिप गया। मौला अली ने नमाज़ पढ़ानी शुरू की और जैसे ही सजदे के लिए मौला अली ने अपना सिर ज़मीन पर टेका इब्ने मुलजिम ने ज़हर में डूबी हुई तलवार से मौला अली के सिर पर वार कर दिया। तलवार की धार दिमाग़ तक उतर गई और ज़हर जिस्म में उतर गया। अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम के बारे में कहा जाता है कि उसने ये अटैक मुआविया के उकसावे में आकर किया था। मुआविया मौला अली के खलीफा बनाए जाने के खिलाफ था। अली के जिस्म में इतना ज़हर फैल गया कि हकीमों ने हाथ खड़े कर दिए और फिर 21 रमजान को वो घड़ी आई, जब शियाओं के पहले इमाम और सुन्नियों के चौथे खलीफा हज़रत अली इस दुनिया से रु खसत हो गए। मुआविया की दुश्मनी अली की मौत के बाद रु की नहीं, उनके बाद अली के बड़े बेटे इमाम हसन को ज़हर देकर शहीद किया गया और फिर कर्बला (इराक) में अली के छोटे बेटे इमाम हुसैन को शहीद किया गया। मौला हज़रत अली के बारे में कहा जाता है कि सबसे पहले कुरआन को उन्होंने ही लिखा क्योंकि अल्लाह के संदेश को लेकर फ़रिश्ते मुहम्मद साहब के पास आते थे और हजरत अली उनको लिखते थे। वहीं हजरत अली की लिखी हुई एक और किताब है जो शिया कम्युनिटी में अहम मुकाम रखती है जिसका नाम है 'नहजुल बलागा" इस किताब में मौला अली ने अपने चाहने वालों को जिंदगी जीने के तरीकों को बयान किया है।
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